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आगम के अनमोल रत्न
अपने छात्र समूह के साथ समवशरण में पहुँचे । इन्होंने भगवान से शास्त्रार्थ किया । अपनी अपनी शंकाओं का समाधान पाकर ये सभी अपने अपने छात्रसमूह के साथ दीक्षित हो गये ।
इसप्रकार मध्यमा के सेमवशरण में एक ही दिन में ११११ ब्राह्मणों ने निर्ग्रन्थ प्रवचन को स्वीकार कर देवाधिदेव महावीर के चरणों में नतमस्तक हो श्रामण्यधर्म को स्वीकार किया ।
इन्द्रभूति आदि प्रमुख ग्यारह विद्वानों ने त्रिपदी पूर्वक द्वादशांगी की रचना की । अतः उन्हें गणधर पद से सुशोभित किया गया ।
इसके अतिरिक्त अनेक स्त्रीपुरुषों ने साधुधर्म और श्रावकधर्म स्वीकार किया। इस प्रकार भगवान महावीर ने वैशाख शुक्ला दसमी के दिन चतुर्वध संघ की स्थापना की ।
इसके बाद भगवान महावीर ने विशाल शिष्य परिवार के साथ राजगृह की ओर विहार कर दिया । क्रमशः विहार करते हुए भगवान सजगृह के गुणशील नामक उद्यान में पधारे ।
यहाँ के महाराज श्रेणिक सपरिवार राजसी ठाठ के साथ भगवान महावीर के दर्शन के लिये गये। देवनिर्मित समेवशरण में विराज कर भगवान ने हजारों की संख्या में उपस्थित जनसमूह को उपदेश दिया। भगवान महावीर के उपदेश से प्रभावित हो राजकुमार मेघ, नन्दिषेण आदि अनेक स्त्री पुरुषों ने भगवान के पास दीक्षा ग्रहण की । भगवान ने अपना १३ वा चातुर्मास यहीं व्यतीत किया ।
वर्षाकाल व्यतीत होनेपर भगवान ने विदेह की ओर विहार कर दिया । अनेक गावों में धर्मप्रचार करते हुए महावीर ब्राह्मणकुण्ड पहुंचे और नगर के बाहर बहुसाल उद्यान में विराजे । १४वाँ चातुर्मासऋषभदत्त तथा देवनन्दा की दीक्षा
ब्राह्मणकुण्ड ग्राम के मुखिया का नाम ऋषभदत्त था । यह कोडाल गोत्रीय प्रतिष्ठित ब्राह्मण था । इसकी पत्नी देवानन्दा जालंधर गोत्रीया