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आगम के अनमोल रत्न
पास अपने बैलों को छोड़कर गांव में चला गया और जब वह वापस लौटा तो उसे बैल वहाँ नहीं मिले। उसने भगवान से पूछा-देवार्य ! मेरे बैल कहाँ है ? भगवान मौन रहे । इस पर ग्वाले ने क्रुद्ध होकर भगवान के दोनों कानों में काठ के कीले ठोंक दिये ।।
छम्माणि से भगवान मध्यमा पधारे और आहार के लिये फिरते हुए सिद्धार्थ वणिक के घर गये । सिद्धार्थ अपने मित्र खरक से बातें कर रहा था । भगवान को देखकर वह उठा और आदरपूर्वक उनको वन्दन किया ।
उस समय भगवान को देखकर खरक बोला-भगवान का शरीर सर्वलक्षण सम्पन्न होते हुए भी सशल्य है । ___ सिद्धार्थ ने कहा-मित्र भगवान के शरीर में कहाँ शल्य है !. जरा देखो तो सही !
देखकर खरक ने कहा-यह देखो भगवान के कान में किसी ने काठ की कील ठोक दी है । सिद्धार्थ ने कहा, वैद्यराज शलाकायें निकाल डालो। महातपस्वी को भरोग्य पहुँचाने से हमें महा पुण्य होगा।
वैद्य और वणिक शलाका निकालने के लिये तैयार हुए पर भगवान ने स्वीकृति नहीं दी और आप वहाँ से चल दिये।
भगवान के स्थान का पता लगा कर सिद्धार्थ और खरक औषध तथा आदमियों को साथ लेकर उद्यान में गये और भगवान को तैल द्रोणी में बिठाकर तेल की मालिश करवाई । फिर अनेक मनुष्यों से पकड़वा कर कानों में से काष्ट कील खींच निकाली । शलाका निकालते, समय भगवान के मुख से एक भीषण चीख निकल पड़ी । - :
- भंगवानमहावीर का यह अन्तिम :भीषण परिषह था। परिषहों का प्रारंभ भी ग्वाले से हुआ और अन्त भी. वाले से ही हुभा ।