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आगम के अनमोल रत्न
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प्राणनाथ | मैने चौदह महास्वप्न देखे हैं । इनका फल क्या है ? कुम्भ राजा ने मधुर स्वर ने कहा- प्रिये ! तुम्हारे ये स्वप्न शुभ हैं । तुम तीन लोक में पूजे जाने वाली सन्तान को जन्म दोगी । तुम्हें इस स्वप्न से अर्थ और राज्य की प्राप्ति होगी ।
महाराज द्वारा अपने स्वप्नों का फल सुनकर रानी प्रभावती बड़ी प्रसन्न हुई । इस प्रकार कुम्भ राजा के वचन को हृदय में स्मरण रखती हुई महारानी प्रभावती वहाँ से उठकर अपने शयनागार में गयीं और मंगलकारी चौदह महास्वप्न निष्फल न हों इस विचार से वह शेष रात जागती रही और धर्म चिन्तन करने लगी ।
प्रातः काल राजा कुम्भ ने स्नान किया तथा सुन्दर वस्त्रालंकार पहनकर वे राज सभा में आये और अष्टांग महानिमित्त के ज्ञाता ज्योति - षियों को उन्होंने बुलाया । महाराज कुम्भ के आदेश पर स्वप्रपाठक आये और उन्होंने महारानी प्रभावती के चौदह स्वप्नों का फल बताते हुए कहा
हे देवानुप्रिय ! हमारे स्वप्नशास्त्र में सामान्य फल देने वाले बयालिस और उत्तम फल देने वाले तीस महास्वप्न बतलाये हैं । ऐसे सब मिलाकर बहत्तर स्वप्न कहे हुए हैं । उनमें से अर्हत तीर्थङ्कर की माताएँ और चक्रवर्ती की माताएँ जब तोर्थङ्कर या चक्रवर्ती का जीव गर्भ में आता है तब तीस महास्वप्नों में से चौदह महास्वप्न देखती हैं । वासुदेव की माताएँ सात महास्वप्न और बलदेव की माताएँ चार महास्वप्न देखती हैं । माण्डलिक राजा की माताएँ एक महास्वप्न को देखती हैं । महारानी प्रभावती देवी ने १४ महास्वप्न देखे हैं अतः महारानी धर्म का प्रवर्तन करने वाले तीर्थङ्कर महापुरुष को जन्म देगी । महाराजा और महारानी स्वप्नपाठकों के मुख से स्वप्न का शुभ फल सुनकर बड़े प्रसन्न हुए । महाराजा ने स्वप्नपाठकों को विपुल धनराशि देकर सम्मानित किया और उन्हें विदा कर दिया ।
तीन मास के पूर्ण होने पर महारानी प्रभावती को पंचरंगे पुष्पों से आच्छादित और पुनः पुनः भाच्छादित की हुई शय्या पर सोने का