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तीर्थकर चरित्र
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में पहुँचा । कमठ को वन्दनकर वह अपने अपराध की क्षमा मांगने लगा।
मरुभूति को सामने देख कमठ अत्यन्त क्रुद्ध हुआ । उसने पास में पड़ी एक बड़ी शिला उठाकर मरुभूति के माथे पर दे मारी । शिला की चोट से मरुभूति की तत्काल मृत्यु हो गई। वह मरकर विन्ध्यगिरि में हथनियों का यूथपति बना । कमठ की स्त्री वरुणा भी पति के बुरेकार्य से शोक करके मरी और उसी अटवी में यूथपति को प्रिय हथिनी बनी। तृतीयभव
पोतनपुर के राजा अरविंद अपने महल की भटारी में बैठे हुए बादलों की ओर देख रहे थे। देखते-देखते पंचरंगी वादलों से आकाश घिर गया और हवा के झोकों से वह उसी समय विखर गया। साथ ही अरविंद के अज्ञान पल भी बिखर गये । उन्हें दादलों की तरह ससार भी अनित्य लगने लगा। उन्होंने अपने पुत्र महेन्द्र को बुलाकर उसे राज्यभार दे दिया और समन्तभद्र नाम के आचार्य के पास दीक्षा ग्रहण करली।
एकसमय अरविंद मुनि सागरदत्त सेठ के साथ विहार कर रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक सरोवर के किनारे पड़ाव डाला। अरविंद मुनि एक तरफ वैठकर कायोत्सर्ग करने लगे।
उस समय मरुभूति हाथी अपनी हथनियों के साथ जलक्रीड़ा के लिये सरोवर आया। पानी में खूब कल्लोलें कर वापिस चला । सरोवर के किनारे पड़ाव को देखकर वह उसी तरफ झपटा । कइयों को पैरों तले रौंदा और कइयों को सूड में पकड़कर फैंक दिया । लोग इधरउधर अपने प्राण लेकर भागने लगे । अरविंद मुनि ध्यान में खड़े ही रहे । हाथी उनपर झपटा, किन्तु उनके पास जाकर सहसा रुक गया। मुनि के तेज के सामने हाथी की क्रूरता जाती रही। वह मुनि के पास आ उन्हें अनिमेष दृष्टि से निहारने लगा। . . -
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