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आगम के अनमोल रत्न
niimmmmm छहा और सातवाँ भव
किरणवेग मुनि का जीव स्वर्गीय सुख का अनुभव करते हुए अपनी आयु की समाप्ति पर जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेहक्षेत्र में सुगन्ध विजय की राजधानी अश्वपुर में वहां के राजा वज्रवीर्य और रानी लक्ष्मीवती के बज्रनाभ नाम का पुत्र हुआ। युवावस्था में वज्रनाम का का विवाह हुमा । कुछ काल के बाद वनवीय राजा ने वज्रनाभ को राज्य देकर दीक्षा लेली।
वज्रनाभ को कुछ काल के बाद एक पुत्रं हुमा उसका नाम चक्रायुध रखा गया । जब वह बड़ा हुआ तब राजा बज्रनाभ ने चक्रायुध को राज्य देकर क्षेमंकर मुनि के पास दीक्षा ग्रहण करली ।
कमठ का जीव चिरकाल तक नरक का दुःख भोगकर सुकच्छ विजय के ज्वलनगिरि के भयंकर जंगल में कुरंग नामक भील हुआ। वह भील वन के प्राणियों के साथ' अत्यन्त क्रूरतापूर्वक वर्ताव करने लगा । ।
। । ' एकसमय वज्रनाम मुनि उसी वन में सूर्य की भातापना ले रहे थे। कुरंग भील उधर से निकला । मुनि को देखते ही उसके मन में वैर भड़क उठा । उसने ध्यानस्त मुनि पर बाण चलाया और उन्हें मार डाला । समभाव से भरकर वज्रनाभ मुनि अवेयक में ललितांग नाम के देव हुए।
कुरंग भील चिरकाल तक पापकर्म कर मरा भौर सातवे नरक में उत्पन्न हुआ। . । .. आठवाँ भव-
- .::; - - , - : जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में पुराणपुर नाम का नगर था-! उसमें वज्रबाहु - नाम का प्रतापी राजा राज्य ,,करता-था । - उसकी रानी का नाम सुदर्शना.था। वज्रनाभ मुनि का जीव देवआयु. पूरी कर सुदर्शना की कुक्षि में पुत्र रूप से जन्मा । उसका नाम सुवर्णवाहु रखा गया ।