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तीर्थकर चरित्र
- एकदिन पार्श्वकुमार अपने झरोखे में बैठे हुए थे उस समय उन्होंने देखा-लोगों के टोले के टोले वनारस के बाहर जा रहे हैं। उनमें किसी के हाथ में पुष्पों के हार, किसी के हाथ में खाने की वस्तु और किसी के हाथ में पूजा की सामग्री थी। पूछनेपर पता चला कि नगर के बाहर कठ नाम का तपस्वी भाया है और वह पंचामितप की कठोर तपस्या कर रहा है। उसी के लिये लोग भेट ले जारहे हैं । पार्श्वकुमार भी उस तपस्वी को देखने के लिये गये ।
यह कठतपस्वी कमठ का जीव था। जो सिंह के भव से भरकर अनेक योनियों में परिभ्रमण करता हुआ एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण के घर जन्मा । उसका जन्म होनेके थोड़े दिन के बाद उसके माता-पिता की मृत्यु होगई। वह अनाथ बालक कठ तापसों के सत् संग में आया और तापस बन गया तापस बनकर वह कठोर तप करने लगा। वह अपने चारों ओर आग तपाकर बीच में बैठता और सूर्य की भातापना लेता। उसकी कठोर तपश्चर्या की लोग बड़ी तारीफ करने लगे। . पावकुमार कठ के पास पहुंचे। उन्होंने अवधिज्ञान से देखा कि तापस की धूनी के एक लक्कड़ में नाग का जोड़ा झुलस रहा है। वे बोले-तापस ! यह तुम्हारा कैसा तप कि जिसमें अंशतः भी दया धर्म नहीं । तुम्हारा यह अज्ञानतप मुक्ति का कारण नहीं हो सकता । जिसमें दया है वही वास्तव में धर्म है। दयाशून्य धर्म विधवा के शङ्गार जैसा निरर्थक है । हे तापस 1 यह जो तुम पंचाग्नि तप, तप रहे हो वह वास्तव में हिंसा ही कर रहे हो। इस प्रकार के अज्ञानतप से तुम्हारा कल्याण नहीं हो सकता।
कठ वोला-राजकुमार ! धर्म का स्वरूप क्या है यह तुम नहीं जान सकते । मैं जो कर रहा हूँ वह ठीक कर रहा हूँ और तुम जो मुझ पर हिंसा का आरोप लगाते--हो यह तुम्हारी निरी-मूर्खता ही है। . - पार्श्वकुमार ने कहा-तपस्वी ठहरो ? अभी बताये देता हूँ कि तुम