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तीर्थकर चरित्र
तेजोलेश्या प्राप्त करने के बाद गोशालक ने छः दिशाचरों से निमित्तशास्त्र पढ़ा जिससे वह सुख दुःख, लाभ-हानि, जीवन और मरण इन छः वातों में सिद्धवचन नैमित्तिक बन गया । तेजोलेश्या और निमित्त ज्ञान जैसी असाधारण शक्तियों से गोशालक का महत्त्व बढ़ गया। उसके अनुयायी बढ़ने लगे । वह अपने संप्रदाय आजीवकों का आचार्य बन गया।
सिद्धार्थपुर से भगवान वैशाली पधारे । वहाँ के बालक आपको पिशाच मानकर सताने लगे। सिद्धार्थ राजा के मित्र शंख को इस बात का पता लगा तो उसने बालकों को भगा दिया। शंख राजा ने भगवान से क्षमा याचनाकर वन्दना की ।
वैशाली से भगवान वाणिज्यग्राम पधारे । वैशाली और वाणिज्यग्राम के बीच गंडकी नदी पड़ती थी। भगवान ने उसे नाव द्वारा पार किया। वाणिज्यग्राम में आनन्द नाम का अवधिज्ञानी श्रावक रहता था उससे आपको वन्दन कर कहा-भगवन् ! अब आपको अल्पकाल में ही केवलज्ञान उत्पन्न होगा।
वाणिज्यग्राम से भगवान क्रमशः श्रावस्ती पधारे और दसवाँ चातुर्मासं आपने श्रावस्ती में ही विताया । चातुर्मास समाप्ति के बाद भगवान सानुलट्ठिय पधारे। वहाँ आपने सोलह की तपस्या की और महाभद्र और सर्वतोभद्र प्रतिमाओं का आराधन किया । अपनी तपस्या का पारणा आनन्द गाथापति की दासी द्वारा फेंके जाने वाले अन्न से किया।
सानुलट्ठिय से भगवान ने दृढभूमि की तरफ विहार किया और उसके बाहर पेढालउद्यान स्थित पोलासचैत्य में जाकर अट्ठम तप कर रात भर एक अचित्त पुद्गल पर निनिमेष दृष्टि से ध्यान किया। भगवान के इस ध्यान की इन्द्र ने प्रशंसा की । संगम नाम के देव को यह प्रशंसा अच्छी नहीं लगी। वह तत्काल भगवान के पास आया और उन्हें ध्यान से विचलित करने के लिये कष्टदायक २० उपसर्ग किये किन्तु उसमें वह असफल रहा।