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तीर्थकर चरित्र
२११ - सूर्य अस्ताचल की ओर चला गया । धीरेधीरे सर्वत्र अन्धेरा फैल गया । शूलपानी ने भो भरने पराक्रम दिखलाने शुरू कर दिये। सर्वप्रथम उसने अट्टहास किया जिसकी आवाज से सारा जंगल गूंज उठा । गांव में सोते हुए मनुष्यों की छातियां धड़कने लगी और हृदय दहल उठे पर इस भीषण अट्टहास का भगवान पर जरा भी असर नहीं हुमा । वे निश्चलभाव से ध्यान में मग्न रहे । भव शूलपानी ने हाथी का रूप बनाकर भगवान पर दन्तप्रहार किये और उन्हें पैरोंतले रौंधा, किन्तु शूलपानी फिर भी उन्हें विचलित नहीं कर सका। अन्त में कई कर प्राणियों के रूप बना बना कर भगवान को कष्ट दिया लेकिन भगवान के मन को वह क्षुब्ध नहीं कर सका ।
अंत में वह भगवान की दृढ़ता एवं अपूर्व क्षमता के सामने हार गया । वह शान्त होकर क्षमाशील भगवान के चरणों में गिर पड़ा और अपनी करता के लिये भगवान से क्षमा याचना करने लगा। भगवान के प्रभाव से शूलपानी की करता जाती रही और वह सदा के लिये दयावान बन गया ।
उस दिन भगवान ने पिछली रात में एक मुहूर्त भर निद्रा ली जिसमें उन्होंने निम्न दस स्वप्न देखे-- . (१) अपने हाथ से ताल पिशाच को मारना।
(२) अपनी सेवा करता हुआ श्वेत 'पक्षी। (३) चित्रकोकिल पक्षी को अपनी सेवा करते हुए। (४) सुगन्धित दो पुष्पमालाएँ । (५) सेवा में उपस्थित गोवर्ग । (६) पुष्पित-कमलोवाला पद्मसरोवर । (७) समुद्र को अपनी भुजा से पार करना । (0) उदीयमान सूर्य की किरणों का फैलना । - (९) अपनी आंतों से मानुष्योत्तर पर्वत को लपेटना -1 (१०) मेरुपर्वत पर चढ़ना । . . , .-.