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आगम के अनमोल रत
' तापसों की इस शिकायत पर कुलपति भगवान के पास आया और बोला-कुमार ! एकपक्षी भी अपने घोंसले का रक्षण करता है और तुम क्षत्रिय होकर भी अपने आश्रमस्थान की रक्षा नहीं कर सकते ? महद् आश्चर्य है।
आश्रमवासियों के इस व्यवहार से भगवान का दिल उठ गया । उन्होंने सोचा-अव मेरा यहाँ रहना भाश्रमवासियों के लिये अप्रीतिकर होगा, इसलिए वर्षा काल के पंद्रह दिन व्यतीत हो जाने पर भी वहाँ से अस्थिक ग्राम की ओर प्रयाण कर दिया-उस समय भगवान ने पांच प्रतिज्ञाएँ की
१-अव से अप्रीतिका स्थान में नहीं रहूँगा। . . २-नित्य ध्यान में रहूँगा। ३-नित्य मौन रखूगा । ४-हाथ में भोजन करूँगा। ५-गृहस्थ का विनय नहीं करूँगा।
भगवान मोराक गांव से विहार कर अस्थिक गांव में आये । वहाँ शूलपानी व्यंतर के मन्दिर में ठहरने के लिये भगवान ने गांववालों से भाज्ञा मांगी। गांववालों ने कहा-देवार्य ! रात्रि में यदि कोई पथिक इस मन्दिर में ठहरता है तो यह यक्ष उसको मार डालता है । अतः यहाँ रहना खतरनाक है।
भगवान ने कहा-इस बात की आप लोग चिन्ता न करें । मुझे केवल आप लोगों की अनुमति चाहिये । भगवान के विशेष आग्रह पर गांववालों ने मजबूर होकर मन्दिर में ठहरने की आज्ञा दे दी । भगवान मन्दिर के एक कोने में जाकर ध्यान करने लगे। । · भगवान की निर्भयता को शूलपानी ने धृष्टता समझा । उसने सोचा-यह व्यक्ति बड़ा धृष्ट है । भरने की इच्छा से ही यहां आया है । गांववालों के मना करने पर भी इसने यहाँ रात्रि व्यतीत करने को निश्चय किया है। रात होने दो फिर इसकी खबर लेता हूँ।