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तीर्थदरं चरित्र
में रखने का आदेश दिया । इन्द्र का आदेश पाकर हरिणेगमेषी देव ने भगवान को देवानन्दा के गर्भ से निकाल कर आश्विन कृष्णा त्रयोदशी के दिन मध्यरात्रि में त्रिशला रानी के गर्भ में रख दिया और त्रिशला के गर्भ में रही हुई कन्या को देवानन्दा के गर्भ में रख दिया । जब भगवान गर्भ में आये तब त्रिशला देवी ने १४ महास्वप्न देखे । महारानी जागृत हुई उसने अपने पति से स्वप्न का फल पूछा। महारोज सिद्धार्थ ने अपनी मति के अनुसार स्वप्न का फल बताते हुए कहा-देवी ! तुम महान पुत्र को जन्म दोगी। दूसरे दिन स्वप्नपाठकों से स्वप्नों का अर्थ कराया । उन्होंने गम्भीर विचार के बाद कहा कि महारानी त्रिशला के गर्भ में लोकोत्तम लोकनाथ तीर्थदूर भगवान का जीव ' आया है रानी ने जो चौदह महास्वप्न देखे है उनका संक्षिप्त फल इस प्रकार है
४ (१) चार दाँत वाले हाथी को देखने से वह जीव चार प्रकार के धर्म को कहने वाला होगा ।
(२) वृषभ को देखने से इस भरतक्षेत्र में बोधि-वीज का वपन करेगा।
(३) सिंह को देखने से कामदेव आदि उन्मत्त हाथियों से भन्न होते भव्यजीव रूप बन का रक्षण करेगा।
(४) लक्ष्मी को देखने से वार्षिक दान देकर तीर्थङ्कर-ऐश्वर्य को भोगेगा।
(५) माला देखने से तीनभुवन के मस्तकपर धारण करने योग्य होगा।
(६). चन्द्र को देखने से भन्यजीव रूप चन्द्र-विकासी कमलों को विकसित करने वाली होगा।
सूर्य को देखने से महातेजस्वी होगा ।' '." (८) ध्वज को देखने से धर्मरूपी ध्वज को सारे संसार में लह