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आगम के अनमोल रत्न
: 'प्राणनाथ, 1 मैने चौदह महास्वप्न देखे हैं। ये शुभ हैं या अशुभ ? इसका फल क्या है ?":
। । • · ऋषभदत्त ने मधुर स्वर में कहा-"प्रिये ! तुमने उदारे स्वप्न देखे हैं-कल्याण रूप, शिवरूप, धन्य, मङ्गलमय और शोभायुक्क स्वप्नों को तुमने देखा है । इन शुभ स्वप्नों से तुम्हें पुत्रलाभ, : अर्थलाभ, और राज्यलाभ होगा। तुम सर्वाङ्गसुन्दर उत्तमलक्षणों से युक्त, 'त्रिलोकपूज्य- पुत्र ,को-जन्म दोगी ।" स्वप्न का फल सुनकर देवानन्दी पति को प्रणाम करके वापिस अपने शयनकक्ष में लौट आई और शेष रात्रि को धर्मध्यान में बिताने लगी। . .
गर्भ सुखपूर्वक बढ़ने कगा । गर्भ के अनुकूल प्रभाव से देवानन्दा के शरीर की शोभा, · कान्ति और लावण्य भी बढ़ने लगा एवं ऋषभदत्त की ऋद्धि यश तथा प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होने लगी। इस प्रकार गर्भ के ८२. दिन बीत गये । ८३वे दिन की ठीक मध्यरात्रि में देवानन्दा ने स्वप्न देखा कि "मेरे स्वप्न त्रिशला क्षत्रियाणी ने चुरा लिये हैं ।" -
- , जिस-समय देवानन्दा ने त्रिशला, द्वारा किया गया अपने. स्वप्नों का हरण , देखा उसी समय त्रिशला रानी ने चौदह महास्वप्न देखे जो पहले देवानन्दा ने देखे थे। . . . . . - स्वप्नहरण का मूल कारण यह था कि जब अवधिज्ञान से सौधर्मेन्द्र को भगवान के अवतरण की पातं ज्ञात हुई तो उसे विचार हुआनकि तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, बलदेव, एवं वासुदेव केवल क्षत्रियकुल में "हौ उत्पन्न होते हैं किन्तु आश्चर्य है कि भगवान काभवतरण ब्राह्मण किल में हुआ है। तीर्थङ्कर न कभी ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए हैं 'भौर नहोंगे । अतः इस अपवाद से बचाने के लिये- भगवान को
अन्य किसी क्षत्रियाणी . के गर्भ में रखना होगा। उन्होंने उसी समय हरिणेगमेषी देव को बुलाया और उसे भगवान को त्रिशला के गर्भ