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आगम के अनमोल रत्न
जगत को जीतने का तुम सामर्थ्य रखते हो। फिर भी पुत्र ! मैं तुम्हें घर पर क्रीड़ा करते हुए देखकर ही अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव करता हूँ। तुम्हें इस समय युद्धस्थल पर जाने की जरूरत नहीं पाव कुमार ने कहा-युद्धस्थल भी मेरे लिये क्रीडारूप ही है। अतः पिताजी! मुझे जाने की भाशा दें। पार्श्वकुमार के विशेष भाग्रह को देखकर पिता ने उन्हें युद्धस्थल पर जाने की आज्ञा दे दी।
पाकुमार ने अपनी विशाल सेना के साथ कुशस्थल की ओर प्रयाण कर दिया । चलतेचलते वे कुशलस्थल पहुँच गये। वहां उन्होंने अपनी छावनी डालदी । तुरंत ही दूत को बुलाकर उसे यवनराज के पास भेजा
और कहलाया-अगर तुम अपनी खैरियत चाहते हो तो शीघ्र हो अपनी सेना के साथ वापिस लौट जाओ वरना युद्ध के लिये तैयार हो जावो। पावकुमार वा सन्देश सुनकर प्रथम तो यवनराज अत्यन्त क्रुद्ध हुआ किन्तु उसे जव पार्श्वकुमार की शक्ति का पता चला तो वह नम्र हो गया । उसने पार्श्वकुमार के साथ सन्धि करली और अपनी सेना के साथ वापिस लौट चला।
घेरा उठ जाने पर कुशस्थल के निवासी बड़ी प्रसन्नता का अनुभव करने लगे। शहर के हजारों निवासियों ने अपने रक्षक पार्श्वकुमार का स्वागत किया । राजा प्रसेनजित भी अनेकतरह की मेंटे लेकर सेवा में उपस्थित हुआ और प्रार्थना करने लगा-कुमार ! आप मेरी कन्या को ग्रहण कर मुझे उपकृत करें ! पावकुमार ने कहा-मै पिताजी की आज्ञा से कुशस्थल का रक्षण करने के लिये आया था विवाह करने नहीं भतः आपके इस अनुरोध को पिता की बिना आज्ञा के स्वीकार करने में असमर्थ हूँ।
पायकुमार अपनी सेना के साथ बनारस लौट भाये । प्रसेनजित भी अपनी कन्या को ले कर बनारस गया। महाराज अश्वसेन ने पावकुमार का विवाह प्रभावती के साथ कर दिया। पतिपत्नी आनन्द के साथ रहने लगे।