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तीर्थकर चरित्र
अपना निर्वाणकाल समीप जानकर भगवान समेतशिखर पर पधारे । वहाँ उन्होंने तेतीस मुनियों के साथ अनशन ग्रहण किया । श्रावण शुक्ला ८ के दिन विशाखा नक्षत्र में एकमास का अनशन कर निर्वाण प्राप्त किया । भगवान को ऊँचाई नौ हाथ थी ।
____ भगवान की कुल आयु ११० वरस की थी। उसमें तीसवर्ष गृहस्थ-पर्याय में एवं ७० वर्ष साधु-पर्याय में व्यतीत किये । नेमिनाथ के निर्वाण के बाद ८३ हजार सात सौ ५० वर्ष बीतनेपर पार्वप्रभु, का निर्वाण हुमा ।
२४. भगवान महावीर और उनके सत्ताईस भव प्रथम और द्वितीय भव
जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह में महावत्र नामक विजय में जयन्ती नाम की नगरी थी। वहीं शत्रुमर्दन नाम का राजा राज्य करता था। उसके राज्य में पृथ्वीप्रतिष्ठान नाम के गांव में नयसार नाम का ग्रामाधिकारी रहता था ।
एक समय वह राजाज्ञा पाकर काष्ठ लिवाने के लिये गाड़ियाँ लेकर जंगल में गया । मध्यान्ह का समय हुआ और नयसार तथा उसके साथी दोपहर के भोजन की तैयारी करने लगे । ठीक उसीसमय वहाँ एक साधु समुदाय भाया ।
साधु किसी एक सार्थ के संग चल रहे थे और सार्थ के आगे निकल जानेपर मार्ग भूलकर भटकते हुए दोपहर को उस प्रदेश में भाये. जहाँ नयसार की गाड़ियों का पड़ाव था ।
मुनियों को देखते ही नयसार का हृदय दयाई हो गया। वह उठा और आदरपूर्वक श्रमणों को अपने पास बुलाकर निर्दोष माहार पानी से उनका आतिथ्य किया और साथ चलकर मार्ग बताया । मार्ग में चलते मुनियों ने नयसार को उपदेश दिया । नयसार पर मुनि के