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आगम के अनमोल रत्न
. कमठ का जीव सिंह मरकर चौथी. नरक में पैदा हुआ। नौवाँ भव भगवान पार्श्वनाथ का जन्म
इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में काशीदेश में वाराणसी नाम की नगरी थी। वह विशाल नगरी उच्च प्रासादों भवनों और ध्वजा पताकाओं से सुशोभित थी। सुशोभित बाजारों, वाग-बगीचों उद्यानों और स्वच्छ जलाशयों से दर्शनीय थी और धनधान्य से परिपूर्ण थी। . ___उस नगर पर अश्वसेन महाराजा का राज्य था। वे प्रतापी, शूरवीर, न्यायप्रिय राजाओं के अनेक गुणों से युक्त थे। उनके प्रबलतेज के सामने अन्य राजा और ईर्ष्यालु सामन्त दबे रहते और नत मस्तक होकर उनकी कृपा के इच्छुक रहते थे । उनके राज्य में प्रजा अत्यन्त सुखपूर्वक निवास करती थी । महाराज अश्वसेन के वामादेवी नाम की रानी थी वह रूप लावण्य एवं सुलक्षणों से सुशोभित थी। महाराज और महारानी में प्रगाढ़ प्रीति थी। उस समय महाप्रभ विमान में सुवर्णबाहु का जीव अपनी २२ सागरोपम की सुखमय आयुपूर्णकर चुका था। वह वहाँ से चैत्र कृष्ण चतुर्थी के दिन विषाखा नक्षत्र में च्यवकर महारानी (वामादेवी) की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। महारानी ने चौदह महास्वप्न देखे । महारानी ने स्वप्नों की बात महाराजा ने कही। स्वप्न सुनकर महाराजा बड़े प्रसन्न हुए । उन्होंने कहा-महादेवी ! आपकी कुक्षि मैं कोई लोकोत्तम महापुरुष आया है । वह त्रिलोक पूज्य और परमरक्षक होगा। ____गर्भकाल की समाप्ति के बाद पौष कृष्णा दशमी के दिन अनुराधा नक्षत्र में नीलवर्णी सर्प लक्षण वाले एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया । इन्द्रादि देवों ने आकर सुमेरु पर्वत पर भगवान का जन्मोत्सव किया । महाराजा अश्वसेन ने भी जन्मोत्सव मनाया । जब भगवान गर्भ में थे उस समय एक भयंकर स फूत्कार करता हुआ माता की बगल से निकल गया था, इसलिये बालक का नाम पार्वकुमार रखा गया। '