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आगम के अनमोल रत्न
मुनिका याद
मुनि अवधिज्ञान से उसके पूर्वभव को जानकर बोले-गजराज अपने पूर्वभव को याद कर ! मुझ अरविंद को पहचान । तू पूर्वभव में मेरे पुरोहित विश्वभूति का पुत्र और कमठ का बड़ा भाई था । आर्तध्यान से मरकर 'तू तिर्यञ्च हो गया है। हाथी चमका; उसे पूर्वभव याद आया । जातिस्मरण ज्ञान से उसने अपने पूर्व को अच्छी तरह से जान लिया । मुनि का उपदेश सुनकर गजराज मरुभूति ने श्रावक के व्रत प्रहण किये । कमठ की स्त्री वरुणा भी हथिनी हुई थी। उसने भी सारी बाते सुनी और उसे भी जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न होगया । सेठ के साथ के अनेक मनुष्य तप का प्रभाव देखकर मुनि हो गये । अरविंदमुनि सार्थवाह के काफिले के साथ अष्टापद की ओर विहार कर गये ।
अब मरुभूति हाथी श्रावक बन गया । वह सूर्य के ताप से तपा हुमा पानी पीता । सूखीघास और सूखेपत्ते खाता । ब्रह्मचर्य से रहता और किसी प्राणी को नहीं सताता । रात-दिन वह सोचता मैंने कैसी भूल की कि मनुष्य भव पाकर उसे व्यर्थ खो दिया। अगर मैं संयमी बन जाता तो पशुजन्म में नहीं आता । इसप्रकार विचार करता हुआ वह संयमपूर्वक काल यापन करने लगा। शुष्क आहार से उसका शरीर क्षीण हो गया ।
एक दिन वह पानी पीने के लिये सरोवर में गया । वहाँ वह दलदल में फंस गया। उससे निकला नहीं गया । उधर कमठ के उस हत्यारे काम से सारे तापस उससे नाराज होगये उन्होंने उसे आश्रम से निकाल दिया। वह भटकता हुआ मरकर, कुक्कुट साँप हुआ । वह सर्प वहाँ पहुँचा और उसने हाथी को प्राणघातक डंक मारा । हाथी के सारे शरीर में जहर व्याप्त हो गया। अपने मन को समभाव में स्थिर रखकर वह मरा और सहस्रारकल्प में महर्द्धिक देवता बना । वरुणा का जीव हथिनी भी थोड़ेसमय बाद मृत्यु पाकर दूसरे देवलोक में देवी बनी। पूर्वभव के स्नेह के कारण वह सहस्रार देवलोक