________________
१७४
आगम के अनमोल रत्न
wwwwwwwwwwwwww
२३. भगवान पार्श्वनाथ प्रथम और द्वितीय भव
पोतनपुर नगर में अरविन्द नाम के राजा राज्य करते थे । उनकी रानी का नाम रतिसुन्दरी था । महाराज अरविन्द का विश्वभूति नाम का पुरोहित था। उसकी स्त्री का नाम अनुद्धरा था । अनुद्धरा से कमठ और मरुभूति नाम के दो पुत्र हुए । कमठ वज्र एवं कुटिल प्रकृति का था और मरुभूति भद्र प्रकृति का था । कमठ का विवाह वरुणा के साथ और मरुभूति का वसुन्धरा के साथ हुआ था ।
समयजाते विश्वभूति ने घर का भार कमठ को' सपा और स्वयं दीक्षा ग्रहण की । तपश्चर्या की और भरकर देवलोक में गया । अनुद्धरा भी तपश्चर्या पूर्वक पति के पीछे जीवन बिताती हुई मृत्यु को प्राप्त दुई । पुत्र भी मातापिता के मृतकार्य के थोड़े दिनों के बाद शोक भूल गये और अपना जीवन सुख पूर्वक बिताने, लगे ।
एक समय पोतनपुर नगर में हरिश्चन्द्र नाम के आचार्य का आगभन हुआ । उनका उपदेश सुनकर मरुभूति श्रावक बन गया और धार्मिकजीवन बिताने लगा। मरुभूति की पत्नी वसुन्धरा अत्यन्त रूपवती थी । कमठ उसके रूप पर आसक्त था अवसर पाकर कमठ-ने -उसे अपनी प्रेमिका बना लिया ।
एक बार मरुभूति ने कमठ को अपनी पत्नी वसुन्धरा के साथ 'व्यभिचार करते देख लिया । उसने राजा से जा कर कमठ की शिकायत की । राजा ने कमठ को बुलाया और उसे गधे पर विठवा कर सारे शहर में फिरवाया और नगर से बाहर निकलवा दिया ।
। कमठ क्रोध से जलता हुआ एक तापस, आश्रम में पहुँचा वहाँ तापस बन उग्र तपश्चर्या करने लगा। थोड़े दिनों के बाद कमठ की उग्रतपस्वी के रूप में प्रसिद्धि हो गई। सैकड़ों लोग उसके पास आने लगे । मरूभूति भी अपने अपराधों की क्षमा मांगने कमठ के आश्रम