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आगम के अनमोल रत्न
संशयग्रस्त होगई । मल्लीकुमारी के तर्क का उत्तर नहीं दे सकी । निरुत्तर परिवाजिका को देख मल्ली की दासियाँ उसकी हँसी उड़ाने लगी और उन्होंने उसका गला पकड़ कर उसे बाहर निकाल दिया।
मल्ली के राजमहल से अपमानित वह चोखा अपनी शिष्याभों 'के साथ मिथिला से निकल गई और 'पांचाल देश की राजधानी कांपि'त्यपुर पहुँची । एक दिन वह अपनी कुछ शिष्याओं को साथ में लेकर जितशत्रु महाराज के महल में गई और वहाँ महाराज को दानधर्म शौचधर्म का उपदेश देने लगी।
महाराज जितशत्रु को अपने अन्तःपुर की विशाल एवं · अनुपम सुन्दरियों पर बड़ा अभिमान था । महाराज ने परिव्राजिका से पूछापरिवाजिके ! तुम अनेक ग्राम नगरों में घूमती हो और अनेक राजमहलों में भी प्रवेश करती हो । राजा महाराजाओं के वैभव को अपनी भाँखों से देखती हो । कहो-मेरे जैसा अन्तःपुर भी तुमने कहीं देखा है ? परिब्राजिका ने उत्तर दिया-राजन् ! आप कूपमण्डक प्रतीत होते हैं । मापने दूसरों की पुत्रवधुओं, भार्याओं, एवं पुत्रियों को नहीं देखा इसीलिये ऐसा कहते हैं । मैंने मिथिला नगर के विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या मल्लीकुमारी का जो रूप देखा है वैसा रूप किसी देवकुमारी या नागकन्या का भी नहीं। मल्लिकुमारी के रूप की प्रशंसा सुनकर महाराज ने मल्लिकुमारी के साथ विवाह करने का निश्चय किया और उसी समय दूत को बुलाकर मल्लीकुमारी की मंगनी के लिये मिथिला जाने का आदेश दिया । महाराज की आज्ञा पाकर दूत मिथिला की भोर चल पड़ा । , छहों राजाओं के दूत मिथिलाधिपति कुम्भ के पास पहुंचे और अपने अपने राजाओं की ओर से मल्लीकुमारी की मंगनी करने लगे। महाराज कुम्भ ने छहों राजाओं के प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया और अत्यन्त क्रुद्ध होकर दूतों को अपमानित कर उन्हें निकाल