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आगम के अनमोल रत्न
खोल दिया । द्वार खुलते ही उन्मुक्तमन से प्रसन्नता की किलकारियों करते हुए पशु-पक्षी अपने अपने निवासस्थान की ओर भागने लगे । पशुओं को उन्मुक्तमन से भागते देख अरिष्टनेमि अपार प्रसन्नता का अनुभव कर रहे थे । सारथी के इस कार्यपर प्रसन्न होकर नेमिकुमार ने अपने समस्त अमूल्य भाभूषण सारथी को दे दिये। उन्होंने अपने रथ को शौर्यपुर की ओर चलाने का आदेश दे दिया। भगवान विना विवाह किये ही शौर्यपुर लौट आये। ____ भगवान को वापस लौटता देख एक दूत दौड़ा हुआ लग्नमण्डप के पास पहुँचा । उसने महाराज उग्रसेन से कहा-स्वामी ! नेमिकुमार विवाह करने से इन्कार करके आधे मार्ग से ही लौट गए। ,
क्यों ? महाराज ने धड़कते हुए हृदय से प्रश्न किया । ।
पाकशाला के पास में बंधे हुए पशुओं की चीत्कारों ने उनके हृदय को भारी आघात पहुँचाया । वे वहाँ गये और सब पशुओं को बन्धनमुक कर विना कुछ कहे सुने सारथी को रथ वापिस लौटाने का आदेश दिया । महाराज ! मैं वहाँ उपस्थित था । वे कुछ न बोले किन्तु उनकी आखों में अद्भुत चमत्कार था । ऐसा लगता था मानों उन्होंने सबकुछ पा लिया ।
चहलपहल रुक गई। महाराज उग्रसेन महारथी श्रीकृष्ण आदि सब के सब अपने अपने शीघ्रगामी वाहन पर आरूढ़ होकर घटनास्थल पर पहुँचे । महारानी भी दो चार दासियों के साथ शिविका में बैठकर रवाना होने की तैयारी करने लगी । शहनाई के स्वर शिथिल पड़ गये। . .
- राजकुमारी राजुल तो मूच्छित होकर ज़मीन पर गिर पड़ी। महारानी राजुल को धैर्य बँधा रही थी। श्रावण के बादलों की तरह सक की आखों में आंसू बह रहे थे । । ", :, ।।।