________________
आगम के अनमोल रत्न
___ अस्त्र-शस्त्रों की आवाज सुनकर श्रीकृष्ण के महल में खलबली मच गई। सभी बड़ेबड़े वीर एकत्र हुए जिनमें श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता बलदेव भी थे । सभी दौड़कर श्रीकृष्ण के पास आये और बोलेगोविंद ! यह कैसी आवाजें भा रही हैं ?. अभी अभी हमने सारंग धनुष की टंकार सुनी, पांचजन्य की ध्वनि सुनी । कैसी आवाजें आ रही हैं । कोई चक्रवर्ती या वासुदेव तो पैदा नहीं हुआ है ?
श्रीकृष्ण स्वयं विस्मित थे । वे यह सोच ही रहे थे कि एक पहरेदार ने आकर सूचना दी कि अरिष्टनेमि शस्त्रागार में पहुंचकर आपके शस्त्रों का प्रयोग कर रहे हैं। श्रीकृष्ण को पहरेदार की सूचना पर विश्वास नहीं हुमा । वे स्वयं अपने साथियों के साथ आयुधशाला में पहुँचे । वहाँ पहुँचने पर उन्होंने देखा कि अरिष्टनेमि सारगधनुष को धारण कर पांचजन्य शंख फूंक रहे हैं। उनके आश्चर्य की सीमा न रही । अरिष्टनेमि ने श्रीकृष्ण की ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा-- भैया ! आपके शस्त्रागार के संरक्षक कहते थे कि इन अस्त्र-शस्त्रों को आपके सिवाय और कोई नहीं उठा सकता और न चला ही सकता है किन्तु मै इनमें ऐसी कोई विशेषता नहीं देखता ।।
श्रीकृष्ण अरिष्टनेमि के इस अतुलपराक्रम को देखकर विचार में पड़ गये । इस अतुलपराक्रमी के सामने कृष्ण को अपना भविष्य अन्धकारमय दिखाई देने लगा । उन्होंने अरिष्टनेमि के वास्तविक वल का पता लगाने का निश्चय किया । अवसर देखकर श्रीकृष्ण ने भरिष्टनेमि से कहा-"भाई आज हम कुस्ती करें। देखें कौन वली है ?" अरिष्टनेमि ने नम्रता से कहा-बन्धुवर ! आप बड़े है, इसलिए हमेशा ही आप वली है । श्रीकृष्ण ने कहा-इसमें क्या हर्ज है ? थोड़ी देर खेल ही हो जाएगा । भरिष्टनेमि बोले-धूल में लोटने की मेरी इच्छा नहीं है किन्तु मै बल परीक्षा का दूसरा उपाय बताता हूँ। आप हाथ लम्बा कीजिए । मै उसे झुका हूँ। जो हाथ