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आगम के अनमोल रत्न
भगवती मल्ली के पास उरस्थित हुए और हाथ जोड़ कर नम्र भाव 'से कहने लगे-भगवन् । बोधि को प्राप्त करो, 'धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करो । वह धर्मतीर्थ जीवों के लिये हितकारी सुखकारी और निश्रेयसकारी होगा। इस प्रकार बार बार प्रार्थना करके वे देव अपने स्थान चले गये ।
देवताओं से उद्बोधित्त भगवती मल्ली ने प्रवज्या के लिए मातापिता से आज्ञा प्राप्त की। महाराज कुम्भ ने प्रवज्या के लिए प्रवृत्त भगवती मल्ली का एक हजार आठ सुवर्ण कलशों से अभिषेक किया। अभिषेक के अवसर पर चौंसठ इन्द्र भी उपस्थित थे । भभिषेक के वाद भगवती मल्ली मनोरमा नाम की शिविका में बैठी । शकेन्द्र देवराज ने मनोरमा शिविका की दक्षिण भाग की. वाहा (डंडी) पकड़ी। ईशान इन्द्र ने उत्तर तरफ की ऊपर की बाहा पकड़ी । चमरेन्द्र ने दक्षिण तरफ की निचलो बाहा ग्रहण की तथा शेष देवों ने यथायोग्य इस मनोरमा शिविका के भाग को प्रहण करते हुए उसका वहन करने लगे । मनोरमा शिविका के आगे आठ मङ्गल* चलनेलगे । इस 'पुनीत अवसर पर देवों ने संपूर्ण नगरी को सजाया था और साफ सुथरा किया था ।
भगवती मल्ली की मनोरमा शिविका सहवाम्र वन में अशोक वृक्ष के नीचे भाई। भगवती मल्ली ने वस्त्राभरणों को त्याग कर पंचमुष्ठि लोच किया । भगवती मल्ली के वस्त्राभरण प्रभावती देवी ने ग्रहण किये । भगवती मल्ली ने सिद्धों को वन्दन कर सामायिक 'चारित्र को ग्रहण किया । उस समय वातावरण अत्यन्त शान्त था । -उस समय भगवती मल्ली को मन पर्थयज्ञान उत्पन्न हुआ। उस समय आपने तीन दिन का उपवास ग्रहण किया था वह दिन पौष शुक्ला एकादशो का था । आपके साथ तीनसौ मनुष्य और तीनसौ स्त्रियों ने ___ *स्वस्तिक, श्रीवस्त नन्दिकावर्त, वर्द्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण ।