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आगम के अनमोल रत्न
है । ऐसे शरीर से उत्पन्न होने वाले कामसुखों में कौन आसक्ति रखेगा भौर कौन उसमें मोहित होगा ?
हे राजाओ ! आप मेरे पूर्वजन्म के मित्र थे। अव से तीसरे भव में सलिलावती विज्य में हम लोग उत्पन्न हुए थे । मेरा नाम महाबल था । हम लोग साथ साथ खेले कूदे थे । वीतशोका हमारी राजधानी थी। हम लोगों ने साथ ही में निर्ग्रन्थ दीक्षा धारण की थी। हम लोग एक जैसी तपस्या करते थे पर थोड़े से कपटाचार के कारण मुझे स्त्रीवेद का बन्ध हुआ था । वहाँ से हम सब जयन्त विमान में उत्पन्न हुए। वहाँ का आयु पूरा कर तुम सब राजा हुए हो और मैने महाराजा कुम्भ के यहाँ कन्या के रूप में जन्म ग्रहण किया है। ___मल्लीकुमारी के इन वचनों का राजाओं पर बड़ा प्रभाव पड़ा । वे अपने पूर्वभव का विचार करने लगे। विचार करते करते शुद्ध अध्यवसायों, शुभ लेश्याओं और जातिस्मरण को आवरण करने वाले कर्मों के नष्ट होने से उन्हें जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया । वे अब अपने पूर्वभव को कांच की तरह स्पष्ट देखने लगे। भगवती मल्ली की बात पर उन्हें पूरा विश्वास हो गया । भगवती ने मोहनघर के द्वार खुलवा दिये । सब एक दूसरों से खूब मित्रभाव से मिले।।
भगवती मल्ली ने राजाओं से कहा-मै दीक्षा लेना चाहती हूँ। आजीवन ब्रह्मचारिणी रह कर संयम पालन द्वारा चित्त में रही हुई काम, क्रोध मोह आदि असवृत्तियों को निर्मूल करने का मैने निश्चय कर लिया है । इस सम्बन्ध में आप लोगों के क्या विचार हैं ?
राजाओं ने कहा-भगवती! हम लोग भी आपकी ही तरह कामसुखों का त्याग कर प्रवज्या ग्रहण करेंगे । जैसे हम पूर्व जन्म में आप के मित्र थे सहयोगी थे वैसे इस भव में भी आप का ही अनुकरण करेंगे।