________________
तीर्थङ्कर चरित्र
१-पहला मित्र अचल प्रतिवुद्धि नामक इक्ष्वाकु वंश का अथवा इक्ष्वाकु (कोशल ) देश का राजा हुआ । इसकी राजधानी अयोध्या
थी।
२-दूसरा मित्र धरण, चन्द्रच्छाय नाम से अंगदेश का राजा हुआ, जिसकी राजधानी चम्पा थी।
३-तीसरा मित्र पूरण, रुक्मि नामक कुणाल देश का राजा हुमा जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी।
४-चौथा मित्र वसु, शंख नामक काशी देश का राजा हुआ जिसकी नगरी वाराणसी थी।
५-पांचवा मित्र वैश्रमण, भदीनशत्रु नाम कुरुदेश का राजा हुआ जिसकी राजधानी हस्तिनापुर थी।
६-ठा मित्र अभिचन्द, जीतशत्रु नाम धारण कर पंचाल देश का राजा हुआ जिसकी राजधानी कांपिल्यपुर थी।
महाबल देव मति श्रुति और अवधिज्ञान से युक्त हो कर, जव समस्त ग्रह उच्च स्थान में रहे हुए थे, सभी दिशाएँ सौम्य थीं सुगन्ध, मन्द और शीतलवायु दक्षिण की ओर बह रहा था और सर्वत्र हर्ष का वातावरण था ऐसी सुमङ्गल रात्रि के समय अश्विनी नक्षत्र के योग में हेमन्त ऋतु के चौथे मास माठवें पक्ष अर्थात् फाल्गुण मास के शुक्ल पक्ष में चतुर्थी की रात्रि में बत्तीस सागरोपम की स्थिति को पूर्ण कर जयन्त नामक विमानसे च्युत होकर इसी जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र की मिथिला नामक राजधानी में कुम्भराजा की प्रभावती देवी की कोख में अवतरित हुए । उस रात्रि में प्रभावती देवी ने चौदह महास्वप्न देखे । जो इस प्रकार हैं-गज, ऋषभ, सिह, अभिषेक, पुष्पमाला, चन्द्रमा, सूर्य, स्वजा, कुम्भ, पद्म युक्त सरोवर, सागर, विमान, रत्नों की राशि, एवं धूमरहित अग्नि । इन चौदह महास्वों को देखकर महारानी जाग उठी और राजा के शयन कक्ष में जाकर सविनय बोली