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आगम के अनमोल रत्न
रानी पद्मावती यान से नीचे उतरी और पुष्करणी में प्रवेश करके स्नान किया और गीली साड़ी पहने ही कमल पुष्पयों को ग्रहण कर नागगृह में प्रवेश किया । वहाँ उसने सर्वप्रथम लोमहस्तक से नाग प्रतिमा का परिमार्जन किया और उसकी पूजा की । फिर महाराजा की प्रतीक्षा करने लगी। ___ इधर प्रतिबुद्धि महाराज ने भी स्नान किया। फिर सर्वअलंकार पहिनकर सुबुद्धि प्रधान के साथ हाथी पर बैठकर वे नागगृह आए । हायी से नीचे उतर कर महाराजा एवं सुश्रुद्धि मन्त्री ने नाग मन्दिर में प्रवेश किया और नाग प्रतिमा को प्रणाम किया। नाग मन्दिर से निकल कर वे पुष्प-मण्डप में आये और श्रीदामकाण्ड की अपूर्व रचना का निरीक्षण करने लगे। कलात्मक पुष्प-मंडप की रचना को देखकर महाराज अत्यन्त आश्चर्य चकित हुए । अमात्य को बुलाकर महाराज प्रतिबुद्धि कहने लगे मन्त्री ! तुम मेरे दूत के रूप में अनेक ग्राम नगरों में घूमें हो। राजा महाराजाों के महलों में भी गये हो । कहो, आज तुमने पद्मावतीदेवी का जैसा श्रीदामकाण्ड देखा वैसा अन्यत्र भी कहीं देखा है ?
सुधुद्धि बोला-"स्वामी ! एक दिन भापके दूत के रूप में मैं मिथिला नगरी गया था । वहाँ विदेहराज की पुत्री सल्लीकुमारी की. । जन्मगांठ के महोत्सव के समय मैंने एक दिव्य श्रीदामकाण्ड देखा था। उस दिन मैंने पहले पहल जो श्रीदामकाण्ड देखा, पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड उसके लाख भाग को भी बराबरी नहीं कर सकता। महाराज ने पूछा-"वह विदेह राजकन्या मल्लीकुमारी रूप में कैसी है ? मंत्री ने कहा-स्वामी | विदेह राजा को श्रेष्ठ कन्या मल्लीकुमारी सुप्रतिष्ठित कूर्मोन्नत (कछुए के सामान उन्नत) एवं सुन्दर चरणवाली है। वह अनुपम सुन्दरी है । उसका लावण्य अवर्णनीय है। ___मंत्री के मुख से मल्लीकुमारी के रूप की प्रशंसा सुनकर महाराज प्रतिवृद्धि बड़े प्रसन्न हुए और उसी क्षण 'दूत को बुलाकर कहने लगे:तुम मिथिला राजधानी जाओ। वहाँ कुम्भराजा. की पुत्री एवं प्रभावती