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तीर्थधर चरित्र
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का नाम पद्मावती था । राजा के प्रधान मंत्री का नाम सुबुद्धि था। वह साम, दाम, दण्ड और भेद नीति में कुशल था और राज्य का शुभचिन्तक था । उस नगर के ईशान कोण में एक विशाल नाग गृह था।
एक वार पद्मावती देवी का नाग पूजा का उत्सव आया । महारानी पद्मावती ने महाराजा प्रतिबुद्धि से निवेदन किया-"स्वामी । कल नाग पूजा का दिन है। आपकी आज्ञा से उसे मनाना चाहती हूँ । आप भी नाग पूजा में मेरे साथ रहें, ऐसी मेरी इच्छा है ।"
महाराज प्रतिबुद्धि ने पद्मावती देवी की यह प्रार्थना स्वीकार की । महाराज प्रतिवुद्धि को स्वीकृति प्राप्त कर उसने अपने सेवकों को बुलाकर कहा-कल मै नागपूजा करूँगी अतः तुम माली को बुलाकर कहो कि-"पद्मावती देवी और महाराज प्रतिवुद्धि नागपूजा करेंगे अतः जल और स्थल में उत्पन्न होने वाले पांच वर्ण के पुष्पों को विविध प्रकार से सजाकर एक विशाल पुष्प मण्डप बनाओ । उसमें फूलों के अनेक प्रकार के हंस, मृग, मयूर, कौंच, सारस, चक्रवाक, मैना, कोयल, ईहामृग, वृषभ, घोड़ा, मनुष्य, मगर, पक्षी, मृग, अष्टापद, चमरी, वनलता, एवं पद्मलता आदि के चित्रों को बनाया जाए। उस पुष्पमण्डप के मध्य भाग में सुगन्धित पदार्थ रखो एवं उसमें श्रीदामकाण्ड (पुष्पमालाएँ) लटकाओ और पद्मावतीदेवी की राह देखते हुए रहो।" सेवकों ने माली से जाकर पद्मावतीदेवी की उक्त आज्ञा कही। मालियों ने महारानी के आदेशानुसार वैसा ही किया ।
प्रातः महारानी की आज्ञानुसार सारे नगर की सफाई की गई. और सारे नगर में सुगन्धित जल छिड़काया गया।
महारानी स्नान कर एवं सर्ववस्रालंकारों से विभूषित हो धार्मिक यान पर बैठी । अपने विशाल परिवार से घिरी हुई महारानी का यान नगर के बीच से निकला और जहां पुष्करणी थी वहां आया ।