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आगम के अनमोल रत्न
कारों के यहाँ ऐसा मज्जनक ( स्नानउत्सव ) पहले भी देखा है, जैसा इस सुबाहुकुमारी का भज्जन- महोत्सव है ? उत्तर में वर्षघर ने कहास्वामी ! आपकी आज्ञा शिरोधार्य कर मै एकबार मिथिला गया था । वहाँ मैने कुम्भराजा की पुत्री मल्ली का स्नान महोत्सव देखा था ! सुबाहुकुमारी का यह मज्जनोत्सव उस मज्जनमहोत्सव के लाखवें अंश को भी नहीं पा सकता । इतना ही नहीं मल्लीकुमारी का जैसा रूप है वैसा स्वर्ग को अप्सरा का भी नहीं है । उसके सौन्दर्य रूपी दीप के सामने संसार की राजकुमारियों के रूप जुगनू जैसे लगते हैं । वर्षघर के मुख से मल्लीकुमारी की प्रशंसा सुनकर राजा उसकी ओर आकर्षित हो गया और राजकुमारी मल्ली की मंगनी के लिये अपना दूत कुम्भराजा के पास मिथिला भेज दिया ।
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उस समय काशी नामक जनपद में वाराणसी नाम की नगरी थी । वहीं शंख नामका राजा राज्य करता था ।
उस समय विदेहराज कुम्भ को कन्या मल्लीकुमारी का देवप्रदत्त कुण्डल - युगल का सन्धि भाग खुल गया । उसे सान्धने के लिए नगरी के चतुर से चतुर सुवर्णकारों को बुलाया गया । सुवर्णकार उस कुण्डल - युगल को लेकर घर आये और उसे जोड़ने का प्रयत्न करने लगे । नगरी के सभी सुवर्णकार इस काम में जुट गये लेकिन अनेक प्रयत्नों के बावजूद भी वे कुण्डल - युगल के सन्धि-भाग को नहीं जोड़ सके । अंत में हताश होकर वे महाराज के पास पुनः पहुँचे और अनुनय विनय करते हुए कहने लगे- स्वामी ! हमने इस कुण्डल- युगल को जोड़ने की बहुत प्रयत्न किया लेकिन हम इस में असफल होगये । अगर आप चाहें तो हम ऐसा ही दिव्य दूसरा कुण्डलयुगल बनाकर आपकी सेवा में उपस्थित कर सकते हैं। महाराज सुवर्णकारों की बात सुन - कर अत्यन्त क्रुद्ध हुआ और उन्हें देश निर्वासन की आज्ञा देदी | महाराज के आदेश से ये लोग अपने परिवार और सामान के साथ मिथिला