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आगम के अनमोल रत्न
भगवती मल्ली का बाल्यकाल सुख समृद्धि और वैभव के साथ बीतने लगा । उनके लिए ५ धाएँ रखी गई थी तथा और भी दास दासियाँ थीं जो उनका लालन-पालन करती थीं। भगवती मल्ली अत्यन्त रूपवती थी। उसके यौवन के सामने अप्सरा भी लज्जित थीं। लम्बे और काले केश सुन्दर आँखें और बिम्बफल जैसे लाल अधर थे। वह कुमारी से युवा हो गई। उन्हें जन्म से अवधिज्ञान था और उस ज्ञान से उन्होंने अपने मित्रों की उत्पत्ति तथा राज्यप्राप्ति आदि बातें जान ली थीं। उन्हें अपने भावी का पता था। भाने वाले संकट से बचने के लिए उन्होंने अभी से प्रयोग प्रारम्भ कर दिया ।
भगवती मल्ली ने अपने सेवकों को अशोकवाटिका में एक विशाल मोहनगृह (मोह उत्पन्न करने वाला भतिशय रमणीय घर) बनाने की आज्ञा दी। साथ में यह भी आदेश दिया कि "यह मोहनगृह अनेक स्तंभों वाला हो उस मोहनगृह के मध्य भाग में छह 'गर्भगृह (कमरे) बनाओ । उन छहों गर्भगृहों के ठीक बीच में एक जालगृह (जिसके चारों ओर जाली लगी हो और जिसके भीतर की वस्तु बाहर वाले देख सकते हों ऐसा घर) बनाओ। उस जालगृह के मध्य में एक मणिमय पीठिका बनाओ तथा उस मणिपीठिका पर मेरी एक सुवर्ण की प्रतिमा बनवाओ उस प्रतिमा का मस्तक ढक्कन वाला होना चाहिये।" भगवती मल्ली की आज्ञा पाकर शिल्पकारों ने मोहनगृह बनाया और उसमें मल्ली कुमारी की सुन्दर सुवर्ण प्रतिमा बनाई । । ।
___ अब मल्लीकुमारी प्रति दिन अपने भोजन का एक कवल प्रतिमा के मस्तक का ढक्कन खोलकर उस में डालती थी और पुनः उसे ढंक देती थी । अन्न के सड़ने से उस प्रतिमा के भीतर अत्यन्त दुसह्य दुर्गन्ध पैदा हो गई थी। मल्ली कुमारी का प्रति दिन यही क्रम चलता रहा।
उस समय कोशल जनपद में साकेत नाम का नगर था । वहाँ इक्ष्वाकु वंश के प्रतिबुद्धिः नाम के राजा राज्य करते थे। उनकी रानी