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तीर्थङ्कर चरित्र
rommmmmmmmm..wimwww.r उसकी सुदर्शना नाम की रानी थी। सुदर्शना को सन्तान न होने से वह सदा दुःखी रहा करती थी। ____ अपने पति के कहने से उसने कुल देवी की आराधना की। कुल देवी प्रकट हुई । रानी ने पुत्र मांगा। देवी यह वरदान देकर चली गई कि एक जीव देवलोक से चवकर तेरे घर में पुत्र रूप में जन्म लेगा।
समय पर रानी गर्भवती हुई। उस रात्रि में महारानी ने सिंह का स्वप्न देखा। गर्भ के प्रभाव से रानी को दया पलवाने का और अठाई महोत्सव कराने का दोहद उत्पन्न हुआ। महाराजा ने उसे पूरा किया ।
समय आने पर पुत्र हुआ। उसका नाम पुरुषसिंह रखा। पुरुषसिंह का युवावस्था में आठ सुन्दर कन्याओं के साथ विवाह हुआ।
एक दिन कुमार उद्यान में गया वहाँ उसने 'विजयनन्दन' नाम के भाचार्य को देखा । उनका उपदेश सुनकर उसे वैराग्य उत्पन्न हो गया । कुमार ने माता पिता को पूछ कर 'विजयनन्दन' आचार्य के पास दीक्षा ग्रहण की और निरतिचार संयम का पालन करते हुए कठोर तप करने लगे। 'तीर्थङ्कर' नाम कर्म का उपार्जन करने वाले वीस स्थानों में से किसी एक स्थान की उत्कृष्ट भावना से आराधना कर तीर्थङ्कर नाम कर्म का उपार्जन किया । अन्त में अनशन पूर्वक देह त्याग कर पुरुषसिंह मुनि 'वैजयन्त' नामक अनुत्तर विमान में महर्द्धिक देव बने ।
___ जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में अयोध्या नाम की नगरी थी। वहाँ 'मेघ' नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे । उनकी रानी का नाम 'मंगलादेवी' था । 'पुरुषसिह' का जीव 'वैजयन्त' देव का आयु पूर्ण कर श्रावण शुक्ला द्वितीया के दिन मघा नक्षत्र में महारानी मंगलावती के उदर में उत्पन्न हुआ। महारानी ने तीर्थङ्कर को सूचित करने वाले चौदह महास्वप्न देखे । रानी गर्भवती हुई । गर्भ काल के पूर्ण होने पर वैशाख शुक्ला अष्टमी के दिन मघा नक्षत्र के योग