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आगम के अनमोल रत्न
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निर्वाण का समय समीप जान भगवान एक हजार मुनियों के साथ समेतशिखर पर पधारे । एक मास का: अनशन कर हजार मुनियों के साथ मार्गशीर्ष शुक्ला दसमी के दिन रेवती नक्षत्र में निर्वाण पद प्राप्त किया । इन्द्रादि देवों ने भगवान का निर्वाणोत्सव किया।
' भगवान की सम्पूर्ण 'आयु ८४ हजार वर्ष की थी । शरीर की ऊँचाई ३० धनुष की थी । कुन्थुनाथ भगवान के निर्वाण के पश्चात् हज़ार करोड़ वर्ष कम पल्योपम का चौथा अंश बीतने पर मरनाथ भगवान का निर्वाण हुमा
१९. भगवती मल्ली : ', प्राचीनकाल में जिम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह वर्षक्षेत्र में मेरुपर्वत से पश्चिम में, निषधवर्षधर पर्वत से उत्तर में, शीतोदा महानदी से दक्षिण में, सुखावह वक्षस्कार पर्वत से पश्चिम में, और पश्चिम लवणसमुद्र से पूर्व में सलिलावती विजय था। इस सलिलावतो विजय की राजधानी का नाम था वीतशोका । यह नगरी.अपरिमित वैभव और धनधान्य से परिपूर्ण थी । यह नगरी नौ योजन चौड़ी थी और देवलोक के समान अत्यन्त रमणीय थी। इस नगरी में प्राचीन काल में बल नाम के राजा राज्य करते थे। वे न्यायप्रिय और प्रजा के पालक थे । इनके राज्य में प्रजा संतुष्ट, सुखी, संपन्न और स्वस्थ थी। महाराज के धारिणी नाम की एक रानी थी। वह पतिव्रता थी और पति की सेवा में सदा तत्पर रहती थी। .... .
एक रात्रि में महारानी ने स्वप्न में केशरीसिंह को मुख-में प्रवेश करते हुए देखा । स्वप्न को देखकर महारानी जाग उठी । वह पति के शयनखण्ड में गई और उसने पति को जगाकर स्वप्न कह सुनाया। स्वप्न सुनकर महाराज "बल" ने 'कहा-तुम आदर्श पुत्ररत्न को जन्म दोगी। उसी दिन से महारानी ने गर्भ धारण किया । नौ मास और साढ़े सात रात्रि के बीत जाने पर महारानी ने एक सुन्दर पुत्ररत्न