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तीर्थकर चरित्र
नक्षत्र' •का योग था । भगवान के निर्वाणोत्सव को इन्द्रादि देवों ने मनाया ।
चन्द्रप्रभस्वामी की कुल आयु १० लाख पूर्व की थी। जिन में ढाईलाख पूर्व शिशुकाल में विताये । २१ पूर्व सहित साढ़े छ लाख पूर्व पर्यन्त राज्य किया और २४ पूर्व सहित एक लाख पूर्व तक वे साधु रहे । उनका शरीर १५० धनुष ऊँचा था। . . .
सुपाव स्वामी के भोक्ष गये पीछे नौ सौ कोटी सागरोपमं बीतने पर चन्द्रप्रभ जी मोक्ष में गये ।।
९. भगवान सुविधिनाथ पुष्करवर द्वीपा के पूर्व विदेह में पुष्कलावती विजय है। उसकी नगरी 'पुंडरोकिनी' थी। महापद्म वहाँ का राजा था। वह बड़ा ही धर्मात्मा तथा प्रजावत्सल था । वह संसार से विरक्त हो गया और उसने जगन्नद नामक स्थविर मुनि के पास दीक्षा ग्रहण की। एकावली जैसी कठोर तपश्चर्या करते हुए महापद्ममुनि ने तीर्थङ्कर नामकर्म का उपार्जन किया । अन्त में वे शुभ अध्यवसाय से मर कर वैजयन्त नामक देव विमान में महद्धिक देव रूप में उत्पन्न हए । '
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में कांकदी नाम की नगरी थी । उस भव्य नगरी का शासक महाराजा 'सुग्रीव' था। उसकी महारानी को नाम 'रामा' था । वैजयन्त विमान में ३३ सागरोपम का आयु पूर्ण करके महापद्मदेव का जीव फाल्गुन कृष्णा नौमी को मूल नक्षत्र में रामादेवी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। चौदह महास्वप्न देखे । इन्द्रादि देवों ने गर्भ कल्याणक को मनाया । मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी को मूल नक्षत्र में पुत्र जन्म हुआ । देवी देवताओं ने और इन्द्रों ने जन्मोत्सव किया । गर्भावस्था में गर्भ के प्रभाव से रामादेवी सभी प्रकार के कार्यों को सम्पन्न करने की विधि में कुशल हुई, इसलिये पुत्र का नाम सुविधि रखा
और गर्भ काल में माता को पुष्प का दोहद उत्पन्न हुमा था इसलिये बालक का दूसरा नाम 'पुष्पदन्त' रक्खा गया ।