________________
'तीर्थदर चरित्र
।
mom
के लिये वहाँ आई और अनुकूल तथा प्रतिकूल उपसर्ग करने लगीं। रात भर उपसर्ग करने के बाद भी जब मेघरय को अविचल देखा तो वह हार गई । अन्त में इन्द्रानियों ने अपना असली रूप प्रकट कर मेघरथ की धार्मिक दृढ़ता की प्रशंसा करते हुए अपने अपराध की क्षमा मांगी तथा मेधरथ को प्रणाम कर अपने स्थान चली गई।
एक वार तीर्थंकर भगवान धनरथ स्वामी का समवशरण हुआ। महाराज मेघरथ ने अपने समस्त राज्य परिवार के साथ भगवान के दर्शन किये। भगवान धनरथ स्वामी ने उपदेश दिय । उपदेश सुनकर मेघरथ को वैराग्य. उत्पन्न होगया । युवराज, दृढरथ ने भी दीक्षा लेने की भावना प्रकट की। महाराज मेघरथ ने अपने पुत्र मेघसेन को शासन भार सौप दिया और युवराज दृढरथ के पुत्र रथसेन, को युवराज पद पर अधिष्ठित किया । . ___ महाराज मेघरथ ने अपने सात सौ पुत्रों, चार हजार राजाओं एवं अपने लघु भ्राता दृढरथ के साथ धनरथ तीर्थङ्कर के समीप दीक्षा - ग्रहण की। एक -लाख पूर्व तक विशुद्ध संयम का पालन कर और तीर्थकर नामकर्म का उपार्जन कर अनशन पूर्वक मर कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए। दृढरथ मुनि भी विशुद्ध- संयम की आराधना कर सर्वार्थसिद्ध विमान में तेतीस सागरोपम की आयु वाले देव वने। तेरहवाँ भव
भगवान शान्तिनाथ - ... कुरु देश में हस्तिनापुर नाम का नगर था। वहाँ विश्वसेन नाम के परम प्रतापी एवं धर्मवीर राजा राज्य करते थे । उनकी रानी का नाम अचिरा था। उसका सौंदर्य रति को भी लज्जित करता था। वह पतिपरायणा सतीशिरोमणि थी ।
मेघरथं देव का जीव सर्वार्थसिद्ध विमान से चवकर भाद्रपद कृष्ण सप्तमी के दिन भरणी नक्षत्र में जब चन्द्रमा का योग आया तव महा