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तीर्थङ्कर चरित्र
बाज-नहीं महाराज ! मुझे कबूतर नहीं चाहिये अगर आप अपने शरीर का मांस काटकर देगे तो मै उसे ही खा कर तृप्त हो जाऊँगा। ___महाराज मेघरथ ने बिना कुछ विचार किये कबूतर की प्राणरक्षा के हेतु उसी क्षण छुरी और तराजू मंगवाया । तराजू के एक पल्ले में कबूतर को बिठाया भौर महाराज स्वयं अपने शरीर का मांस काटकर दूसरे पल्ले में रखने लगे । यह देखकर राज्य परिवार हाहाकार कर उठा । रानियाँ, राजकुमार, मन्त्रीगण एवं प्रजागण भाक्रन्दन करने लगे। महाराज को ऐसा न करने लिये खूब समझाने लगे
"महाराज! आप पृथ्वी पालक हैं । आपकी देह प्रजा की, राष्ट्र की संपत्ति है । आप के चले जाने से सारा राष्ट्र अनाथ हो जायेगा। कबूतर तो एक क्षुद्र प्राणी है । उसकी रक्षा के लिये अमूल्य देह को नष्ट करना उचित नहीं है । एक कबूतर के दुःख का आप इतना ध्यान रखते हैं तो हमारे आक्रन्दन दुःख पर आप का ध्यान क्यों नहीं जा रहा है ?
महाराज मेघरथ समस्त प्रजाजनों एवं परिवार के सदस्यों को आश्वासन देते हुए कहने लगे-प्रजाजनो ! यह देह एक दिन अवश्य नष्ट होनेवाला है। अगर इस देह के विलीनीकरण से एक प्राणी के प्राण बच सकते हैं तो इस से बढ़कर और क्या पुण्य हो सकता है ?
आप सब मोह और स्नेह से प्रेरित हो कर इतना भाक्रन्द कर रहे हैं। मै अपने कर्तव्य का पालन कर रहा हूँ। आप मेरे इस कर्तव्य पालन में वाधक न बने । -
महाराज मेघ विना विलम्ब के अपने हाथ से अपने शरीर का मांस काट काट कर तराजू में रखते जाते परन्तु तराजू का पलड़ा ऊँचा ही रहने लगा । कबूतर का पलड़ा ऊपर उठा ही नहीं। महाराज को तीव्र वेदना हो रही थी किन्तु अत्यन्त-शान्त भाव से वे उसे सह रहे थे । शरीर के कई भाग काट कर - पलड़े में रख दिये