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आगम के अनमोल रत्न
इन्द्रादि देवों ने शिविका सजाई। माप शिविका पर आरूढ़ होकर ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन भरणी नक्षत्र में सहस्राम्र उद्यान में पधारे । वहाँ एक हजार राजाओं के साथ प्रवज्य ग्रहण कर ली । भावों की उच्चता से आपको चौथा ज्ञान उत्पन्न हो गया। उस दिन आपने वेले का तप किया था । दूसरे दिन भगवान ने मन्दिरपुर के राजा सुमित्र के घर परमान्न से पारणा किया । राजमहल में वसुधारादि पांच दिव्य प्रकट हुए . . ___एक वर्ष तक भगवान छमस्थ अवस्था में विचरण कर पुनः हस्तिनापुर के सहस्राम्र उद्यान में पधारे । वहाँ पौष सुदि नवमी के दिन भरणी नक्षत्र में शुक्ल ध्यान की परमोच्च स्थिति में उन्हें केवलज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न हो गया। इन्द्रों ने केवलंज्ञान महोत्सव किया । समवशरण की रचना हुई । भगवान ने परिषद् के बीच देशना दी । इस देशना से प्रभावित हो महाराजा चक्रायुध अपने पुत्र कुलचंद्र को राज्य देकर अन्य पैंतीस राजाओं के साथ दीक्षित हुए । चक्रायुध ने त्रिपदी श्रवण कर चौदह पूर्व सहित अंग सूत्रों की रचना कर गणधर पद प्राप्त किया । इसी प्रकार पैतीस राजाओं ने भी गणधर पद प्राप्त किये ।
: भगवान के शासन में शूकर वाहन वाला गरुड नामक शासन देवता और कमल के आसन पर स्थित हाथ में कमण्डल पुस्तकादि धारण करने वाली निर्वाणी नामक शासन देवी प्रकट हुई। - केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद भगवान २४९९९ वर्ष तक भारतभूमि को अपने पावन उपदेश से पवित्र करते रहे । इस के बीच भगवान शान्तिनाथ के ६२००० साधु, ६१६०० साध्वियां, ८०० चौदह पूर्वघर, ३००० अवधिज्ञानी, ४००० मनःपर्ययज्ञानी, ४३०० केवलज्ञानी, ६००० वैनियलब्धि वाले, २४६ वादविजयो, २९०००० श्रावक एवं ३९३००० श्राविकाएं हुई।