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आगम के अनमोल रत्न
क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त किया । देवेन्द्रों ने केवलज्ञान उत्सव किया । समवशरण की रचना हुई । भगवान ने देशना दी । देशना सुनकर 'यश' आदि ५० गणधर हुए । ६ सौ धनुष ऊँचा चैत्यवृक्ष था । पाताल नामक यक्ष एवं अंकुशा नाम की देवी, शासन के देव-देवी हुए।
भगवान के परिवार में छासठ हजार साधु, ६२ हजार साध्वियां, ९०० चौदह पूर्वधर,*.४३०० भवधिज्ञानी, १५००- मनःपर्ययज्ञानी, ५ हजार केवलज्ञानी, ८ हजार वैक्रिय लब्धिधर, तीन हजार दौ सौ वादी, २ लाख ६ हजार श्रावक एवं ४ लाख चौदह हजार श्राविकाएँ थीं।
___यत ग्रहण के पश्चात् साढ़े सातलाख वर्ष बीतने पर चैत्र शुक्ला पंचमी के दिन रेवती नक्षत्र में समेतशिखर पर एक मास का अनशन कर सात हजार साधुओं के साथ भगवान ने निर्वाण प्राप्त किया ।
भगवान ने कुमारावस्था में साढ़ेसात लाख वर्ष, १५ लाख वर्ष पृथ्वी पालन में एवं साढ़े सातलाख वर्ष व्रत पालन में व्यतीत किये। इस प्रकार भगवान की कुल आयु तीसलाख वर्ष की थी । विमलनाथ भगवान के निर्वाण से नौ सागरोपम व्यतीत होने पर अनन्तनाथ भगवान ने निर्वाण प्राप्त किया । ___ आपके पुरुषोत्तम वासुदेव और प्रभ नाम के बलदेव परम भक्त थे ।
१५. भगवान धर्मनाथ धातकीखण्ड द्वीप के पूर्व विदेह में भरत नामक विजय में भदिलपुर नाम का नगर था । वहाँ दृढरष नाम का राजा राज्य करता था। उसने विमलवाहन मुनि के समीप दीक्षा ली और कठोर साधना कर तीर्थङ्कर नामकर्म का उपार्जन किया । अन्तिम समय में संथारा लिया और काल कर, वैजयन्त विमान में महर्दिक देव बना 1
- *प्रवचनसारोद्धार में एक हजार चौदह पूर्वधर और पाँच हजार मनःपर्ययज्ञानी होने का उल्लेख है। "