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तीर्थङ्कर चरित्र
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१६. भगवान शान्तिनाथ
प्रथम भव
जम्बू द्वीप के भरतक्षेत्र में रत्नपुर नाम का रमणीय नगर था । वहाँ 'श्रीषेण' नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे । उनकी 'अभिनन्दिता' एवं 'शिखिनन्दिता' नामकी दो रानियाँ थीं ।
एक दिन अभिनन्दिता रानी ने स्वप्न में अपनी गोद में चन्द्र और सूर्य को खेलते हुए देखा। उसके फल स्वरूप महारानी अभिनन्दिता ने एक साथ दो पुत्र रत्नों को जन्म दिया जिसमें एक का नाम इन्दुषेन और दूसरे का नाम विन्दुषेन रखा गया । दोनों ने कलाचार्य के पास रहकर शिक्षा प्राप्त की । वे युवा हुए ।
उसी नगर में सत्यको नाम का उपाध्याय रहता था । उसको पत्नी का नाम जम्बुका था और पुत्री का नाम सत्यभामा ।
अचल ग्राम में धरनीजट नाम का वेदों में पारंगत ब्राह्मण रहता था । उसकी यशोभद्रा नाम की पत्नी थी । यशोभद्रा ने नंदिभूति और शिवभूति नाम के दो पुत्रों को जन्म दिया । धरणीजट की कपिला नाम की एक रखैत दासी थी उससे कपिल नामक पुत्र हुआ। कपिल वुद्धिमान था । जब धरणीजट अपने पुत्रों को अभ्यास कराता था तब वह पास में बैठ कर पाठ याद कर लेता था । उसने अल्पकाल में पाण्डित्य प्राप्त कर लिया । अपने को योग्य और समर्थ जानकर कपिल घर छोड़ कर विदेश चला गया । अपने गले में दो यज्ञोपवीत धारण करके अपने आपको उत्तम ब्राह्मण बताने लगा । वह घूमता हुआ रत्नपुर आया । वहाँ उसने महोपाध्याय सत्यको को अपनी विद्वत्ता से खूब प्रभावित किया । धीरे धीरे दोनों का संपर्क गाढ़ हो गया । सत्यकी ने अपनी सर्वांगसुन्दरी पुत्री सत्यभामा का विवाह कपिल के साथ कर दिया । इस लग्न के सम्बन्ध से कपिल की प्रतिष्ठा बढ़ गई । सभी नगर के लोग कपिल को भादर बुद्धि से देखने लगे 1