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आगम के अनमोल रत्न
ने-एक रात्रि में चौदह महास्वप्न और- १५ वा वन का स्वप्न देखा। अपराजित का जीव अच्युत देवलोक से चवकर महारानी रत्नमाला के उदर में उत्पन्न हुआ। गर्भ काल के पूर्ण होने पर, महारानी ने पुत्र को जन्म दिया । गर्भकाल में महारानी ने वज्र का स्वप्न देखा था इसलिये बालक का नाम वज्रायुध रक्खा । युवावस्था में वज्रायुध का विवाह लक्ष्मीवती नाम की राजकुमारी के साथ हुआ । कालान्तर में अनन्तवीर्य का जीव अच्युतकल्प से चवकर रानी लक्ष्मीवती की कुक्षि से उत्पन्न हुआ उसका नाम सहस्रायुध रखा गया । वह बड़ा हुआ। उसका विवाह कनकधी नामकी सुन्दर राजकुमारी के साथ हुमा। ___राजा क्षेमकर को लोकान्तिक देवों ने आकर दीक्षा लेने की सूचना की। उन्होंने वज्रायुध को राज्य देकर दीक्षा ली और तप से घनघाती कर्मों को नष्ट कर जिन हुए।
वज्रायुध के शस्त्रागार में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। फिर अन्य तेरह रत्न भी उत्पन्न हुए । चक्रायुध ने रत्नों की सहायता से छः खण्डों पर विजय प्राप्त कर चक्रवर्ती पद प्राप्त किया।
कालान्तर में क्त्रायुध ने अपने पुत्र सहस्रायुध को राज्य देकर क्षेमकर केवली के पास दीक्षा ग्रहण करली । सहस्रायुध ने भी कुछ काल के बाद पिहिताश्रव नाम के मुनियों के समीप दीक्षा ली। अन्त में दोनों राजमुनियों ने ईषत् प्राग्भार पर्वत पर पादोपगमन अनशन- किया। ___आयु पूर्ण होने पर दोनों मुनि तीसरे प्रैवेयक में अहमीन्द्र, हुए। और-वहाँ पच्चीस सागरोपम आयु प्राप्त की। । । । दसवाँ और ग्यारहवाँ भव '.. जम्बूद्वीप के पूर्व महाविदेह के भूषणरूप पुष्कलावती विजय में पुण्डरीकिणी नाम की नगरी थी। वहाँ धनरथ नाम के तीर्थकर राजा राज्य, करते थे। उनकी रूप और लावण्य से युक्त दो, रानियाँ थी। जिसमें एक का नाम प्रीयमती और दूसरी का नाम मनो