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आगम के अनमोल रत्न
____महाराज की आज्ञा से कपटवेषी वे दासियाँ कनकधी के साथ रहने लगी और उसे नाट्य-कला सिखाने लगी । बीच बीच में अपराजित, अनन्तवीर्य के रूप गुण और शौर्य का गुणगान भी कर दिया करता था।
अपराजित से अनन्तवीर्य की प्रशंसा सुनकर कनकश्री ने अपराजित से पूछा-तुम जिसकी प्रशंसा करती हो वह कैसा है ? उसने कहा-अनन्तवीर्य शुभा नगरी का महापराक्रमी राजा है उसका रूप कामदेव के रूप को लज्जित 'करता है । शत्रुओं का वह काल है । अधिक क्या कहूँ उसके समान इस पृथ्वी पर दूसरा कोई नहीं है। ____अनन्तवीर्य के गुणगान सुनकर कनकधी उसको देखने के लिये लालायित हो उठी। वह अब सदा अनन्तवीर्य का ध्यान करने लगी। उसे विचार मन देखकर अपराजित ने कहा-सुन्दरि ! आजकल तुम चिन्तामन क्यों दिखाई देती हो? इस पर कनकश्री ने कहा-जब से मैंने अनन्तवीर्य की प्रशंसा सुनी है तभी से मैं उससे मिलने के लिये लालायित हो उठी हूँ। इस पर अपराजित ने कहा-भद्रे ! चिन्ता मत करो, अगर चाहोगी तो अनन्तवीर्य को मै तुम्हारे सामने उपस्थित कर सकती हूँ।
कनकधी बोली-सखि ! मेरा ऐसा भाग्य ही कहाँ है जो कि मुझे अनन्तवीर्य के दर्शन हों। अगर तू मुझे उनके दर्शन करा देगी तो मैं जन्म भर तेरा उपकार नहीं भूलूंगी ।
कनकधी की बात सुनते ही दोनों भ्राताओं ने अपना भसली रूप प्रकट कर दिया । राजकुमारी सचमुच ही अनन्तवीर्य को अपने सम्मुख पाकर स्तंभित रह गई । अनन्तवीर्य के अद्भुत रूप को देख कर वह उस पर आसक्त होगई । अनन्तवीर्य भी कनकधी के रूप पर मुग्ध हो गया । ____ अनन्तवीर्य बोला-कनकी! अगर शुभा नगरी को साम्राज्ञी बनने की इन्छा हो तो तुम मेरे साथ चलो।