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आगम के अनमोल रत्न
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एक बार रात के समय कपिल नाटक देखने गया। नाटक देखकर जब वापस घर लौट रहा था तब मार्ग में जोरों से वर्षा होने लगी। रात्रि का समय और गाढ़ अंधेरा होने से उसने सोचा-अंधेरी रात में कौन देखता है, फिर क्यों नये वस्त्रों को भिगो कर खराब करूँ ? उसने सारे वस्त्र उतार कर बगल में दवा लिये और नंगा ही भीगता हुभा घर पहुंचा और कपड़े पहिन कर दरवाजा खटखटाया । सत्यभामा पति की राह देख रही थी। उसने किवाड़ खोल दिये। इतनी वर्षा में भी पति के सूखे वस्त्रों को देखकर वह विचार में पड़ गई। पत्नी को विचार मग्न देखकर कपिल ने पूछा-प्रिये ! किस विचार में भम हो ? उसने 'उत्तर दिया-इतनी वर्षा में भी आपके वस्त्र सूखे हैं इसका क्या कारण है ? कपिल ने उत्तर दिया-"मंत्र प्रभाव से मेरे वस्त्र भीग नहीं सके ।" सत्यभामा चतुर थी। वह समझ गई कि कपिल अवश्य ही नंगा होकर भाया है। अपने पति को इस अकुलीनता से उसे अत्यन्त खेद हुआ । उसे निश्चय हो गया कि मेरा पति उच्चकुल का नहीं है । अब वह पति से उदासीन रहने लगी। ' कालान्तर में विद्वान धरणीजट 'सत्यकी के घर पहुँचा । भोजन के समय धरणीजट कपिल से अलग बैठ कर भोजन करने लगा। सत्यभामा धरणीजट के इस व्यवहार से कपिल, के प्रति और भी
भी संशयग्रस्त हो गई.। उसने धरणीजट को सौगन्ध देकर कपिल 'के विषय में पूछा । धरणीजट ने कहा-'कपिल दासी पुत्र है।'
अपने पति की कुलहीनता से उसे बड़ा दुःख हुआ। उसने राजा की सहायता से कपिल का परित्याग कर दिया। वह राजा के महल में रानी के साथ तपमय जीवन बिताने लगी। महाराजा की आज्ञा से कपिल रत्नपुर छोड़कर अन्यत्र चला गया ।, -
, कोशांबी के राजा वल के श्रीमती रानी से उत्पन्न श्रीकान्ता नाम की रूपवती पुत्री थी। उसने अपनी पुत्री के लिए योग्य वर प्राप्त करने के लिए स्वयम्बर रचा । इस स्वयम्वर में अनेक नगरोंके राजकुमार उपस्थित हुए। -उसमें श्रीसेन , का पुत्र इन्दुसेन, भी.