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तीर्थङ्कर चरित्र केवलज्ञान प्राप्त किया। देवों ने केवलज्ञान उत्सव मनाया । समवशरण की रचना हुई । उस में पूर्व द्वार से प्रवेश कर एक कोस सोलह धनुष ऊँचे चैत्य वृक्ष के नीचे 'नमःतीर्थाय' ऐसा कह कर रत्न सिंहासन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ गये। भगवान उपस्थित परिषद को उपदेश देने लगे । भगवान की देशना सुनकर अनेक नर नारियों ने भगवान से प्रवज्या ग्रहण की उनमें 'चमर' आदि सौ गणधर मुख्य थे । भगवान से त्रिपदी का श्रवण कर गणधरों ने द्वादशांगी की रचना की । प्रथम प्रहर में भगवान ने अपनी देशना समाप्त कर दी। द्वितीय प्रहर में गणधर श्री 'चमर' ने देशना दी। द्वितीय प्रहर में 'चमर' गणधर ने अपनी देशना समाप्त की। भगवान ने चतुर्विध संघ की स्थापना की। वे विशाल साधु साध्वी-परिवार के साथ विचरण करते हुए भव्यों को प्रतिबोध देने लगे।
भगवान के तीर्थ में 'तुंबर' नामक यक्ष एवं महाकाली नाम की शासन देवी हुई।
___ भगवान के परिवार में ३,२०००० साधु, ५,३०००० साध्वी, २४०० चौदह पूर्वधर, ११००० भवधिज्ञानी, १०४५० मनःपर्ययज्ञानी १३००० केवलज्ञानी, १८४०० वैक्रियलब्धिधारी, १०४५० वादी, २८१००० श्रावक एवं ५,१६०० श्राविकाएँ थीं।
वे केवलज्ञान प्राप्ति के वाद वीस वर्ष बारह पूर्वागं न्यून एक लाख पूर्व तक पृथ्वी विचारण करते रहे । अपना मोक्ष काल नजदीक जानकर प्रभु समेतशिखर पर पधारे वहाँ एक हजार मुनियों के साथ अनशन ग्रहण किया । एक मास के अन्त में चैत्र शुक्ला नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र में अवशेष कर्मों को खपाकर एक हजार मुनियों के साथ निर्वाण प्राप्त किया। भगवान का देह संस्कार इन्द्रों ने किया । ।
भगवान दस लाख पूर्व कौमार अवस्था में, उनतीस लाख बारह पूर्वा राज्य अवस्था में एवं वारह पूर्वाङ्ग कम लाख पूर्व चारित्रावस्था