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आगम के अनमोल रत्न
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१५००० केवलज्ञानी, १९८०० वैक्रियलब्धिधारी, १२००० वादी, २९३००० श्रावक एवं ६३६००० श्राविकाएँ हुई।
भगवान ने केवल ज्ञान होने के बाद चार पूर्वाज और चौदह वर्ष कम एकलाख पूर्व तक तीर्थकर पद पर रह करके एक हजार मुनियों के साथ समेतशिखर पर्वत पर चैत्र शुक्ला ५ के दिन मोक्ष प्राप्त किया । भगवान का कुल आयुष्य साठ लाख पूर्व का था ।
४. भगवान अभिनन्दन अम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में भङ्गलावती नामक विजय में 'रत्नसंचया' नाम की नगरी थी। वहाँ 'महाबल' नाम का राजा राज्य करता था। उसने संसार से विरक्त होकर विमलसरि के पास दीक्षा ग्रहण की तथा कठोर तपश्चर्या व निरतिचार संयम का पालन कर तीर्थङ्कर नाम कर्म उपार्जन के बीस स्थानों की आराधना की और तीर्थकर नाम कर्म का उपार्जन किया ।
वह अन्त में अनशन पूर्वक देह त्याग कर महाबलमुनि विजय नामक अनुत्तर विमान में महर्द्धिक देव बना ।
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अयोध्या नाम की सुन्दर नगरी थी। वहाँ इक्ष्वाकुवंश तिलक 'सवर' नाम के राजा राज्य करते थे । उन के अनुशासन में प्रजा अत्यन्त सुख पूर्वक रहती थी। उस संवर राजा के 'सिद्धार्था' नाम की रानी थी। वह कुल मर्यादा का पालन करने वाली श्रेष्ठ नारी थी।
महावल मुनि का जीव विजय विमान से चवकर वैशाख शुक्ला चतुर्थी के दिन अभिजित नक्षत्र में महारानी 'सिद्धार्था' की कुक्षि में उत्पन्न हुआ । गर्भ के प्रभाव से महारानी ने रात्रि में चौदह महास्वप्न देखे । जागृत होकर महारानी ने पति से स्वप्न का फल पूछा । महाराजा संवर ने स्वप्न के महान फल को देखकर कहा-प्रिये ! तुम त्रिलोक पूज्य पुत्र रत्न को जन्म दोगी।