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पपपुरारा
काल लरण वसि सब भये, जोषा सूभर सुजान ।। समल लोक इस औलिया, सम सा न मान ॥१५॥
सोरता चक्रवत्ति सुमि भेव, भोग सोग सब परहरे ।
धरधो ध्यान दिन जोग, सब संसार मन ते तजा ॥१६१ रामा भागीरथ का वर्णन
भागीरथ राजा किया, सगर भीम सह त्याग । दिक्षा ली जिणराय पै, मन में धरि राग ।।१६।।
चौपई पाल प्रजा भागीरथ भूप । मुकट छत्र सिर बने अनूप ।। गज करल दिन बीते पने । श्रुतसागर मुनि मापे सुने ।।१६३।। मरपति के मन हरष अपार । पलं जहां मृनि प्रारण मधार ॥ नगरलोक चाले सह साथ । बन में ध्यान परपी मुनिनाथ ॥१६४।। भाए निकट वंदना करी । साठि सहस की पूची चरी ॥ किरण कारण एकटे मरे । फाहो कथा ज्यों संसय टरे ।।१६।। मुनि बोले पिछला संबंध । तापी हुबा करम का बंध ।। समेव शिखर चाल्यो इक संघ । दंतपुर मोम देख मनरंग ।।१६६॥ देखत लोग संघ को हंस । देखा गांव किमो तह बसे ।। कुंभकार वरण तिझ जात । इरा हो गया जीव नो घात १९६७)] बात कही भीमानी नहीं । गांव माहि देही गण गही ।। पकर पछारे सगले लोग । मीर मां सब कीन्हे फोक ।।१८।। कुभकार मरि वणिवर भया । तप करि बहुरि राज सुत भया ।। तप करि फिरि पायो सुरपान । सो तु' भयो भगीरप मान ।।१६६।। साठि हजार सिघ के जीव । सगर भूप सूत उपजे तीव ।। जात्रा मांहि सब का रह्या ध्यान । राजपुत्र से हूये पान ।।१७।। कारण पाए मुए इकठोर । अणुभ करम की मिटाईन पोर ।।
सुनि भागीरथ कीयो नमस्कार । राज छोड बी बीमा सार ।।१७१।। संका का रास महासात
महाराक्षस लंका का मूम । वन क्रीग का देखन रूप ॥ सकल कुदंय लिया नृप संग । बन उपवन गुह गंभीर उतंग ।। १७२सा