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मुनि सभाचन्य एवं उनका पद्मपुराण
राम का लक्षमण के लिये में पूछताछ
रामचंद्र जाग्यो अधरात । निहां न देख्या लक्षमण कुमार ।। सीता पूछो कित गया । तर समय इम बोली सिया ||२३६१ ।। पुकारो तुम वेंगा दोडि रामचंद्र करें सोरा सोरि || रामचंद्र पूछें हंसि बात | कैसे समझे तुम विरतांत ||२३६२|| श्रासीवाद तू ऊनै दिया । सांची बात कहो तुम सिया ।।
सोता द्वारा उत्तर
सीता कई पर निस गई। चंद्रप्रकास उजेली भई ।। २३६३ ।। वाही घडी लक्ष्मण वनमाला | दोऊं आये रूप रसाला ।। जैसे रथरण चन्द्र को प्रीत । भैसे सदा श्रानन्द की रीत ।। २३६४।। रामचन्द्र किन लक्ष्मण देठि । वनमाला सीता के हेठ || चारू वारता कथा कहै । सब सुख सुहावरणां लहैं ।। २३६५ ।। सीतल चाले पवन सुवास । वनमाला पुंगी श्रास || म की तलागा
दासी जागी देवी थान । कन्यां नं रोवें हैरान || २३६६ ।। सूर सुभट बहु चौकीदार तुरी पलाणां गहि हथियार || केई पाला केई सुवार । निकसे सब कन्या की लार ।।२३६७।।
यनमाला देखी इस ठोर । सब सन्या का हुवा सोर ॥1 देख्या रूप राम लक्षणां । चंद्रसूरज का जोडा बन्यो ।।२३६८ ।।
के इह इन्द्र स्वर्ग त भाइ । किसकी पटंतर न दीया जाय || करि प्रणाम बिन बहु भांति । तुम हो कवरण कहां तुम जात ।। २३६१ ॥
२३३
रामचंद्र यह लक्षमण वीर । सोहैं दोम्यु कनक सरीर ॥
कही प्रभू सब बात पांछली । सगलां के उपजी मन रली ||२३७०||
जै जै सबद करें सब लोग । सगला का भाज्या मन सोग || राजा परसि खबर तब दई । संगी सुनि आनंदित भई २३७१ ॥ छाया नगर हाट बाजार | धरलें उमही वर नार ।। रामत सो प्रति रूप। मूपति दीनी भेट अनूप ॥ २३७२ ।।
करि महो व याज्या बजवाय । रहस रली सू' हुवा उछाह | बैठ सिंहासन रामचंद्र । सफल प्रजा मन भयो प्रानन्द ।। २३७३ ।।