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मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण
इति श्री पद्मपुराणे सीताहरण रामविलाप विधानक ३६ वां विधानक चौपई
लक्ष्मण खरदूषण युद्ध
लक्षमण खडदूषण सों जुध कायर देख रही ना सुष || सूरवीर मन करें उल्हास । सुर नर असुर करें कार । २७४६ ।। विराधित चन्द्रोदिक का सुत । विद्यावर सेना संजुल || लक्ष्मण को कीयो नमस्कार | विनयवंत है बारंवार ।।२७५० ॥
प्रभुजी मुझ को प्राग्या देहु । दुरजन दल नाषु करि बेहु ।। लक्ष्मण विद्यावर प्रति कहूँ। मेरा पराक्रम अब तू लहें ।। २७५१ ।।
देख जु इनक्कू परलय करू । खडदूषण जम मंदिर घरं ॥ fare व विस्मय होय । या सम दूजा बली न कोष || २७५२॥ धन्य धन्य करि विनती करें। खदूषण सों जे तुम लई ।। सब सेना बाकी में हणू 1 अपने चारों अदर गि ।। २७५३ ।। विद्याधर विद्या संभालि लडदूषण के सेनापति का काल ॥ वा सनमुख विद्याधर हुआ 1 पायक सो पायक लडि मुवा ।। २७५४ रथ रथ टूट गिर पड़े। हाथी सूं हाथी तिहां भिड़े || खडदूषण विद्या संभालि । गर्दभ मुख कीया तिस बार ।।२७५५ ।।
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बडी दाढ भयदायक व अब मैं लेस्यू सुन का बेर
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कक तें मेरा सुत । ॥ चंद्रनखा दिगोई तँ घेरि ।। २७५६ ।।
अब तुम को भेजु जम पास तो कू अबर जनम की आस || खच चलायो कात्रिक बांण 1 लक्षमण के लाग्यो भाई कां ॥ १२७५७ ॥
लक्ष्मण को खरबूषण पर विजय
लक्षमण कहें सुखि रे तू गंवार | तू तो गदहा की उरिहार || सिंघ दह् सरभर किम होइ । अव तु श्राया आपा खोइ ।।२७५८।। मारचो द्वारा लखण नै खचि । टूटया छत्र निसान रथ पंच ।। खरदूषण करती गिर पड्या | गहि तरवार भूमि पर परचा ||२७५६॥
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लखमरण सूरजहास संभार 1 मार्या खरदूषण भूपाल || ज्यू माली उडि जांय बयार हम सब सेन्या भागी हार ।। २७६०।