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मुनि सभापंच एवं उनका पद्मपुराण
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राजाओं द्वारा निवेदन
मिवनाद बोले भूपली । हनुमान कोनी यह गती ।। उपाड वृक्ष दाहै प्रासाद । प्रवर कियो रावण सू बाद 1॥३१६५।। सवीर मारे दह लोग । घरि घरि कियो लका में सोग । लका वास करो जण खह । कुना वापा काहे सब खेह ॥३१६६।। रावण मन में राख बर | सगला मारेगा घेर ॥
रावण ने पकडी अनीत । विसर गया धरम की रीत ॥३१६७॥ युद्ध की तैयारी
वासु सब मिल करस्यां जुष । प्रवर न कछु बिचारो बुधि । चंद्रमरीच इम भरणे नरेस । नुए एकठा भए सहु देस ॥३१६८।। रामचंद्र का करी उनगार | रावण मारि मिलावो कार ।। धनगति गज धुन गति करकेत । भीम नल नील सुग्रीव समेत ॥३१३६।। वन मूकरण पर भूपति घणे । सब का नाम कहां लग गिरणं ।। महेन्द्रसेन पबनंजय राय । प्रसन्न कीति की अधिकाइ ।। ३१७०।। विद्याधर एकठे सह भए । सेना जोद्धि राम संग गये ।। प्रश्वनी मुवी पंचमी दिनेस । दीतवार को चले नदेस ।।३१७१।। नक्षत्र कासिका मेष था लगन । प्रबर भए सभी सुह सुकन ।। लक्षमी सिर गागर दही । बलं मगनि तिहां घुमां नहीं ।।३१७२।। पीछे वित मंद समीर । बोल काफ वृक्ष गुण धीर । मुनिधर दं देखे से अन्न । तीसू उपजे काया चन ।।३१७३।। लका तणां गिरा कांग्रा । राबण चित तब चमक्या खरा॥ घड़ी साध सुभ कीया पयारा । सेना जुसी दिनां उनमान ।।३१७४।। राम लक्षण होऊ चढे विमारण । हय गय रथ पायक नीसांन ।। मैंगल' होरि लाख पचास । बहुत विद्याधर रघुपति पास ।।३१७५।। देल धर परवत परि गया। समुद्र नाम राजा तिहो रहा । नल ने पकडि यही नरेन्द्र । आरिण दिया वाको करि बन्द ॥३१७६।। लाग्या रामचंद्र के पास । छोडि दिया तो रघुराय ।। बेल'घरपुर इण ने ले जाय । कन्या च्यारि हरि नै दई प्राय ।।३१७७॥ श्री कमला दूजी गुणमाल । सुश्री रतनचुला सुविसाल ।। उहां चले भये परभात । सुवेल परबत पहुंचे रघुनाष ।।३१७८।।