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मुनि सभाचंच एवं उनका पद्मपुरात
विभीषण का पुनः प्रश्न करना
गुणवान मामंडल देह | गुनवर्ती भई जनक के गेह ।। ५११४ ।। मभोषरण बोल' हूँ कर जोडि । बालि तणां मत्र मरणौ बहोडि । । ५११५ ।।
किम रावण सों ययों विरुद्ध । करी तपस्या उन विन ही जुन || क्यूं रावण उठाया कैलास । निया ठां भया मान का नाम ।। ५११६ ।।
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उनका भव व्यवरा सु हो । इह मो भन का संसय दहो ।। विदारण वन में एकेक मृग । इह मांहि सदा उपसर्ग ।।५११७ ॥
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सामारिक करे या एक देही तजि रावत खेत्र मेषदत्त है मृग का जीव भया पुत्र घरम की नींव ॥ विरक्ष होय करि भया सचेत । जिनवाणी सूं ल्याया हे ।।५११६ा
दीन मृग घरम निसचं सुनी ।। बृहत राजा सिव ती मोह
।।५११८ ।।
अणुव्रत पाल ने वर मांहि । रागद्वेष मनमें कछु नहि || समाधिमरण सो छोटी देह | ईसान स्वर्ग देव के ग्रह ।।५१२० गा
पूरव विदेह विजयबंती देस । कोकिला नयर कांत सोम नरेस ।। रतनाखी राणी गरम भाई । ईसान स्वर्ग से चये सिंह ठाइ ।।५१२१ ।
सुप्रभ नामक भाया कुमार । रूप लक्षण सुत्र महा अपार ।। जोवनवंत भए जु कुमार पिता ने राज दयो सिंह बार ||५१२सः
आप तात दिष्या लई जाइ । करें राज ते सुप्रम राइ ॥ एक दिवस मुनि पास गया । सुब्या धरम संयम व्रत लिया ।। ५१२३॥
तेरह विध पाले चारित्र | रामदोष जीते दो सत्र ।।
बाईस परीस्या सहे बहु बरस । श्रातमध्यान धरयो बहु रद्दस ||५१२४ ।।
तप करि गया सरवारथसिद्ध | तिहां ग्यान की पूरी रि ॥ चरचा मांहितिहां बीतं धढी सकल ग्यान रिघ पूरण जुरी ||४१२५ ॥
उहां चापिय से ग्रेह । बालि पुत्र कंचन सम देह || तिसकें सदा निरंजन ध्यान । चित मां कछु न आवे मन ||५१२६
रावन सों तब हुबा वाद | दमा निमित्त छोड़े विष बाद || गिरि कैलास कियो तप जाइ । रावण तिरण धारक सू भाई || ५१२७॥
क्या बिमारण कोष के भाइ । कैलास परवत लिया उठाई | दयाभाव अंतरगति देखि ॥। ५१२८॥
मुनिवर समस्या ग्यांन सौं देखि