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सुनि सभाबंज एवं उनका पद्मपुराण
सोता की पूर्व कथा
राजा सुनि समझा बईन । परजा कुं देख भरि नैन || जैसे पिता देख पुत्तरी । भैसी दिष्ट राख जे स्वरी ।।५१६३ ।। जे राजा करें प्रघरम । कुल कलंक लगावे बहु जनम || तुम्हारा सेवक की नारि । मुख सों कहिए बात संभारि ५१६४ । बीजावली मन में पिछाउ मै कोई बचन कह्या इहं भाव ॥ मांन भंग हुवा दह घडी । म्रपणे मन बहु चिंता करी ।।५१६५।।
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मरवगुपति अप घरि जाई । त्रिया वचन बोलं समझाई ॥ मैने ब्राज सुणी हैं इक बात तेरा कांम भ्रस्ट होगा परभात ।। ५१६६ ।। राजा तो परि कोध्या घणां । सा दुख तोकु ग्राइकै बयां || सुपि प्रधान प्रति करं विलाप । मन में चिता अति ही व्याप ।। ५१६७।। चहुंषां जलं न छुटे भाग
राजमंदिर में देहू आणि रयणसमें वे कीनां दहन । राजा जाग्या देखी श्रमनि ॥५१६८ ।।
निकस्था भूष सुरंग दुवार दोन सीना संग कुमार ।। सुदरसनां राणी प्रगति में जली
भाजण को नहीं रही गली ।।५१६६॥ रतनवरघन कासी में गया । सरबगुपति राजा तिहां भया । कासि राय कासी का धनी । बल पोरिष ग्यानी गुन गनी || ५२०० ॥
सरवगुति ने भेजा दूत । मेरी श्रागन्यां मांनि बहुत ॥
इतनी सुशिलब कोप्या राम । रतनबरधन उन मराठां ॥५२०१ ।। जो सेवक ठाकुर को हीं एह अनीत कहो कैसे बनें ॥ अब जु इन्हें लगाऊं हाथ फेर न बिगारे का साथ ||५२०२ ।। कहा वरांक सरबगुपति । जिह की भागन्यां श्रनिती ।। जीवन पकड़ी हगुळे पराग। धका दिवाया दूत है जांए । १५२०३१| दूत गया सरयगुपती पास | कासी वचन कहे सब भास ॥ सी सुरिण सेन्या क जोडि । कासी राय में कीनी दौडि ।। ५२०४ ।। वेरया नगरी नीसान बजाय । सुखे सबद तिहां कासिप राइ || उन भी सेना लई हकार सूर सुभट धाए सिंह बार ।। ५२०५ ।। दंडबरवन रतनबरधन कों देखि कासिपराय का परेखि || मु राजा मन भयो श्रानन्द । देख्या प्रत्यख चरन कुं बंदि ||५२०६ ॥
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