Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 545
________________ मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण पट लेस्था का करचा विचार । कस्न नील कापोतं दारि ॥ पल पल महाग्यांन चित चढया । शुक्ल ध्यान बहुविध चित पा ।। ५५६५ ।। यह रुति सहैं परीक्षा चरणी । घरम सुरगाव संबोधि दुणी ॥ करि बिहार फिरे बहु देस । बहुतां ने दियो घरम उपदेस ।। ५५६६ । । मूवर खेचर दानव देव । निस दिन करें राम की सेव ॥ कोटिसिला पहुंचे रामचन्द्र 1 नमस्कार करि ताकू बंदि ।।५५२७ ।। सिध सुमरण कर बैठे तिहां । घरम ध्यान प्रातम गुण लिहा || क्षिपक श्रेण श्रातमगुण लहान । भैंसी विधि सौ ल्याया ध्यान ।। ५५६८ ।। स्वयंप्रभू प्रच्युत विमान । उ अवधि घरि समझ्या ग्यान || पूरब भव का किया विचार। मैं यी सीतां स्त्री अवतार ॥५५६६॥ रामचन्द्र लखमा दोउ वीर नारायण बनभद्र सरीर || 1 सीता के जोब सीतेन्द्र का राम के पास प्रागमन मैं पटराणी राम भरतार | दुख सुख देख्या सारी लार ।।५६००। ४७६ लछमण युवा अधोगति गया । रामचन्द्र व्याकुल प्रतिभया ।। समभि जैन की दिष्या लई | राज विभूति सब तँ तजि दर्द ।।५६०१ ।। द्वादस गुणस्थान करो स्थिति । यबंदुलाडं उसका चित्त ।। एथे भाई दोन्यु बली । रामचंद्र बांधी स्थिति भली ॥ ५६०२३ इहु ले मोध्य बहु भुगते नरग । उहां भोग में महा उपसरंग ॥ इन जान्यां संसार स्वरूप 1 दिक्षा घरी दिगंवर रूप ||५६०३।१ जई ने पटालु करू ग्रसत । भुगताई संसारी बनत ॥ नंदीस्वर को कराई जात । लछमण ने काबू किह भांत ।। ५६०४ || सी समझ उतरघा सीतेन्द्र 1 कोटिमला जठ रामचन्द्र || देव आए ता संग । घरखं प्रति ही फूल सुरंग ।। ५६०५ ।। मंदा पयन पटल जल भरपाई के मेह व ६ ॥ वह रितु के फूले फूल । सीतल छांह सुख का मूल ।। ५६०६ ।। पंछी सगला करें किलोल । सबद सुहावन मधुरे बोल ॥ मोरांव कोहलघुनि करें। सुवा पढे जिनवाणी खरें ।। ५६०७ ।। सुर सीता का रूप वा । हंस गमन सोभा बहू पाइ || रामचंद्र के उनमुख प्राइ | कक बोलो रघुपति राइ ||५६०८ ।।

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