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मुभि सभाधव एवं उसका परपुराण
परहसेन भये सु मुनिदै । लवमनसेन ज्यो प्रथिवी चंदं ।। जिन जोड्या पलीक सहस्र ज्यो स्पाठ । वरण्यों बहु तिहां पूजा पाठ
॥५७३५॥ रविषेणाचार्य द्वारा परापुराण को रचना
रविषेन फ्रिमा प्रकारह सहस्त्र । सुखी भव्य जीव सौ बाधं वंस ।। होई पुन्य उत्तम गति लहैं । भव भव दुख दालिद्र न रहैं ।। ५७३६।।
अपका लहै अमर पद थांन । कारण परह लहै निरवाण ।। मिथ्याप्ती जे धरम का दुष्ट । उन सदा रहै बहु कष्ट ।।५७३७।। जिनवाणी ते भाजे दूरि । तिरा न होवे दुख भर पूरि । दालिद्र सदा न छोड़े मग्य । हंट वियोग अनिष्ट प्रग्य ।। ५७३८।।
मन की इछा कदे न होइ । आदर भाव कर नहीं कोह ॥ तिसकु कोई नः महिमा होइ । जिहां तिहां महिमा जलंभा लेइ ।।५७३६ ।। कलह करम सौ बीतं बड़ीं। खोटी बुधि नहीं वीसरी ॥ रात दिवस में भारत ध्यान | पावै अंत नरक गति थान ॥५७४०।। भव्य जीव सूर्ण परि रुचि । सदा हुवं उत्तम गति सुचि ।। सीलव्रत पाल बहु भाइ । काटि करम ऊंची गति आइ ।३५७४१।। प्रेसी जारिण चलें मग सुधि । धरम होइ बाद प्रति बुधि ।। कुमति फलेस सकल मिट जाइ । राम नाम तसु होइ सहाइ 11५७४२।। सहस्र एक अरु दोईस बरस ! छह महीने बीते कछु सरस 1 महावीर निरवाणा कल्याण । इह अंतर है रख्या पुराग ।।५७४३।। रविषेण नाम मुनिवर निरग्रन्थ । पदमपुराण रच्या सुभ ग्रन्थ ।। तिसके सुण्या होइ बहु रिध । कारण पाव पद पावै सिद्ध ।। ५७४४।।
चले देस नाम जो लेइ 1 ताको मनवछित फल देह ॥
जैसे रवि का होइ प्रकास | होवे अंधकार का नास ।।५७४५।। पपपुराण पढने की महिमा
प्रसा है यह पदम चरित्र 1 मिथ्या मोह मिटै सब सत्र ।। पढे पढा- कहूँ अषांन । पावें स्वगी देव विमान ।।५७४६।।