Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 557
________________ मुनि सभाचंब एवं उनका पमपुराण ४६१ श्री जिन' में कीए देहरे । चउनीस विद रचना मम्बरे ।। चउविष दोन दे वित्त समांन ! चउघडीया अणथमी प्रमान ।।५:०५८।। जीच दया पाल बहभाति । भोजन नीर विवरजित राति ।। दीपग गयांन जाग्य सब हिए । बहुप्त संबोधे श्रावग कीये ॥५७५६ ।। दिल्ली मंडल का मुनिराय । जिसके पट्ट भया बहु ठाइ ।। घरम उपदेम पणां कु' भया । पूजा प्रतिष्ठा जाम नया ।।५७६०।। पंडित पटवारी मुनि भए । ग्यांनव'त करुणां उर थए। मलयकोत्ति मुनिवर गुणवंत । तिनकै हिए ध्यान भगवत ।।५७६१।। गुणकीर्ति पर गुगभद्रसेन । गुणावाद प्रकास जैन ।। भान कीरति मह्मिां प्रति घणी । विद्यावत तपस्थी मुनि ॥५७६२।। कुंवरसेन भट्टारक जती । क्रिया श्रेष्ठ हैं उज्जल मती ।। उन पर सुभचन्द्र सुसेन । धरमवनि सुरणाने बन ||५७६३।। मूल संघ भट्टारक प्रशस्ति श्री मूलसंघ सरस्वती मछ । रसनकीरत मुनि धरम का पछ । तारण तरस ग्यांन गंभीर । जारण सह प्राणी की पीर ॥५७६४।। तप संयम ते प्रातमध्यान । धरम जिनेस्वर कहै बखान । छूट मिथ्या उपज ग्यान । जे निसर्च परि मन में पान ।। ५७६५।। गुरु के अचन सुणि निसत्रं धरै । ते जीव भवसागर तिरै ।। श्री रत्नकीत्ति सध्या संसार | पहुंचे स्वर्गलोक सिंह बार ॥५७६६।। उनकै पट्ट रामचन्द्र भुनी । पाचारिज पंडित बहु गुनी ।। कहैं ग्यांन के सूक्ष्म अग । ई बुद्धि उनके प्रसंग ।।५७६७।। महा मुनीस्वर उत्तम बुधि । क« धरम जिन वाणी सुधि ।। जिसके हिए होए समक्रित । सरघा करै घरम' में नित्त ।।५७६ श्री रामचन्द्र का सुग' पराण । सुख संपति पार्न कल्याण ।। परम दया पाल मात्र लाइ । ते जीव मोक्ष पुरी मा आइ ।।५७६६।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572