Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
View full book text
________________
***
समकित संती पर सुगं । निसचे भ्रष्ट करम कु हणं ॥ लग्न होड़ उतपत्ति । पाये निश्चे पंचम गति ।। ५७४७३।
जिस समे दर्शन होइ पुराण । सुख विलास और सदा कल्याण ॥ मनवांछित फल पावै रणे । ते प्रांनी सब निसचे सु || ५७४८ ||
1
वहा
पदमपुराण कु जे पढ़ें, बांच सुरगाने और || तिहूं लोक का सुख लहैं, पाये निरभय ठौर ।।५७४६१
११५ वां विधानक
चौपई
काष्ठा संघ पट्टावली
काष्ठा संघी माथुर गच्छ । पहुकर गए में निरमल पच ॥
महा निरथ श्राचारज लोह । छांडचा सकल जाति का मोह : । ५७५०।।
पद्मपुरा
तेरह दिध चारित्र का धरो कोन कोन नहीं माया मणी ।। दयावत वहु निरमल ग्यान ।। ५७५१ ।।
महा तपस्वी श्रातम ध्यान
जिल्हां है उसम क्षिमां आदि । खोडे पांच इन्द्री का स्वाद । रूप निरंजन ल्याया चित्त । अठाईस मूल गुण नित्त | ५७५२।।
चौरसी क्रिया संजुक्ति । जे लाइक समकित सी रति ॥ * ग्यान के सूक्षम भेद । वारणी सुरत मिथ्यात का लेख । । ५७५३१ |
I
ग्रो निकट प्रभु ठाढे जोग करें बदना सब ही लोग 1 अग्रवाल श्रावक प्रतिबोध । त्रेपन क्रिया बताई सोध ।।५७५४ ।।
पंच अणुव्रत सिख्या न्यारि । गुरणन्नत तीन कहे उर घरि || बारह व्रत बारह तप कहे। भवि जीत्र सुगि चित में गहे ।। ५७५५
मिथ्या घरम किमो तिरां दूरि । जैन धरम प्रकास्था पुरि ॥ विश्व सौं दान देह सब कोई सासत्र भेद सुरिंग समकित होइ ॥ ५३५६ ।।
दस लाप्यरणी बताया धरम | तीन रत्त का जाण्यां मरम || व्रत विधान समझाई रीत पूजा रचना करें सुचित ॥१५७५७ ॥

Page Navigation
1 ... 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572