Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 553
________________ मुनि सभापंव एवं उनका पपपुराण ४५७ रिषभवास दूजा हुने पुत्र । दोनु गुण लष्यण संजुक्त ।। अणुव्रत पाल बे दिन रात । सीलवंत सोभा की कान्ति ।।५७०७।। सुख सेती तिहां प्राव विहाइ । सुर सौधरम अमर की काय ।। सागर एक प्राथु बल पूर 1 या ही देस च, दोऊ सूर ॥५७०८।। कुमार कीरति तिहां भूपती । लषमी राणी के गरभ थिति ॥ अयकीरति जय प्रभु पो होइ । रूप कान्ति करि सोम दोइ ॥५७०६।। प्रणवत करि धरम सों ध्यान ! हा ते पाय लांतव सुर धान ।। स्वर्ग लोक के भुगतं भोग । भूलि गये पिछला सब सोग ॥५७१०॥ सीतेन्द्र अजोध्या में वर्थ । चक्रवतं छह षंड भोग । दोनु देवपुत्र हुए पाह। इन्द्ररथ प्रभोदरथ राइ ॥५७११।। सर्वरतन रथ दिव्या लेह । राज भार पुत्र को देई ।। तपकरि पाने विजयवंत वास । इन्द्र प्रभोद दिक्षा गुरु पास ॥१७१२।। सोलह कारण का प्रप्त पाल । विजम अंत पहुंचे सिंह बार ।। उहां से चय रावण को जीव । ह अहंन भरत जंबूद्वीप ॥५७१२।। सरबरतन गणधर होइ । घरम उपदेस सुर्ण सब कोइ ॥ जाइ मुकति तिहां सुख अनंत 1 फिर पूछ सीतेन्द्र महंत ॥५७१४॥ लक्ष्मण के प्रति जिज्ञासा कहां उपजै लखमण महान 1 पुष्कराद्धं द्वीप चौ नि ।। सद भूपति पुत्र नगर के ग्रेह । दोई पदइ याइ परि देह ॥५७१५५ । चक्रवत्ति हुशै अरिहंत । पाचै भव सागर का अंत ॥ सात वरष बीते जब जाइ । हम भी लहैं मुगति पद ठाइ 11५७१६।। सीतेन्द्र कीया नमसकार । गये फेर सुर अपने द्वार ॥ बांते फिर आये सब देव । कुरु भोग भूमि का देख्या भेव ।।५७१७।। भामंडल ते वह सुर मिल्ला । पिछला सनबंध सुरणाचा भला ।। देव गया फिर अपने पान । रामचन्द्र सिद्ध के ध्यान 11५७१८।। पचीस बरस लौ सुमरे सिघ । पहुंचे प्रभू मुगति की रिष ।। चतुरनिकाय पाये सब देव । जय जय सबद दुदुभी भेव ॥५७१६।। पुष्प वृष्टि भई तिहां घणी । निर्वास कल्याणक सोभा बराशी ।। प्रष्टतव्य सू पूजा करी। पड़े मंत्र जिनवारणी खरी ।।५७२०

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